मेरठ। थनैला रोग दुधारू पशुओं की एक प्रमुख बीमारी है, जिससे किसानों को प्रतिवर्ष करोडों रूपये की आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। यह रोग मुख्यत अत्यधिक दूध देने वाली गायों व भैसों में होता है। थनैला रोग से ग्रसित पशु का दूध पीने से मानव स्वास्थ्य को भी खतरा हो सकता है। यह कहना है सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौधोगिक विश्वविद्यालय स्थित पशुचिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ राजीव सिंह का।
इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड के वित्तीय सहयोग से कृषि विवि द्वारा शनिवार को ग्राम सिरसली में निशुल्क पशु चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। मार्गदर्शन कुलपति डॉ. के0 के0 सिंह ने किया। परियोजना के मेंटर डॉ. राजबीर सिंह ने कहा कि थनैला रोग के प्रमुख कारण जीवाणु, विषाणु के साथ साथ अयन या थन में चोट पहुंचना, दूध को पूरा न निकलना, कटड़ा/ बछिया द्वारा दूध पीते समय थन में दाँत लगना, पशुशाला में साफ़-सफाई की कमी, आहार में पोषण की कमी, समय से दुहान न करना इत्यादि होते हैं।
मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अमित वर्मा ने बताया कि प्राय: देखा गया है कि सर्दियों में पशुपालक दुहान से पहले अयन व थनों को गुनगुने पानी से धोते हैं, जिसके कारण थन चटक जाते हैं और थनैला की सम्भावना बढ़ जाती है। अत: ताजे पानी से पशुओ के थनों को धोने की सलाह दी। इसके अतिरिक्त पशु दुहने वाले व्यक्ति को भी दूध दुहने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोना चाहिए। पशुओं को हरा चारा, संतुलित आहार, खनिज मिश्रण आदि खिलाना चाहिए। अत्यधिक दूध देने वाले पशु को सख्त फर्श पर रखने के बजाय बिछावन हेतु रेत का प्रयोग उचित रहता है।
दूध निकालने के पश्चात पशु कुछ कमजोरी महसूस करता है तथा थन लगभग आधे घंटे तक खुले रहते हैं। यदि दूध निकालने के बाद पशु को दाना चारा इत्यादि दिया जाये, जिससे पशु काफी समय तक खाने में व्यस्त रहेगा और थनों के छेदों को बंद होने का पर्याप्त समय मिल जाएगा और थनैला की सम्भावना कम होगी। शिविर में डॉ. अमित वर्मा, डॉ. अरबिंद सिंह, डॉ. अजीत कुमार सिंह, डॉ. प्रेम सागर मौर्या, डॉ. विकास जायसवाल, डॉ. आशुतोष त्रिपाठी, डॉ. रमाकान्त, डॉ. रोहित सिंह, डॉ. विष्णु राय, संदीप कुमार आदि द्वारा 50 से अधिक किसानों के कुल 160 से अधिक पशुओं को सलाह व उपचार प्रदान किया गया।