नवीन चौहान
गरीबी, भुखमरी और कोरोना के संक्रमण से लाचार सरकार मुकाबला कर रही है। क्या वास्तव में कोरोना संक्रमण ने हिंदुस्तान को उसकी वास्तविक हकीकत से परिचित करा दिया है। भारत का एक सामान्य नागरिक कितना बेबस है। आजादी के सात दशकों बाद भी गरीबी, भुखमरी और लाचारी के सिवा उसके पास कुछ नही है। अगर कुछ है तो सरकार और जनप्रतिनिधियों का रहमोकरम। देश से ना गरीबी दूर हुई और ना ही गरीबों की समस्याएं। दोनों जस की तस है। सामान्य इंसान सिर्फ अपनी जरूरतों के लिए जिंदगी की गाड़ी को खींच रहा है। वही दूसरी ओर भारत की सत्ता के सिंहासन पर राज करने वाली राजनैतिक पार्टियों की तस्वीर देंखे तो पूरी तरह बदली हुई है। कांग्रेस के बाद अब भाजपा की अर्थव्यवस्था मजबूत है। अगर हरिद्वार जैसे एक छोटे शहर की बात करें तो यहां भी भाजपा का आलीशान जिला कार्यालय तरक्की की हकीकत बयां कर रहा है। जबकि हरिद्वार आज भी एक अच्छे अस्पताल के इंतजार में मुंह बाये खड़ा है। गरीब आज दो वक्त की रोटी के सरकार के सामने गिड़गिड़ा रहा है। सरकार को अपना आधार कार्ड जमा करा रहे है। लेकिन सरकारी राशन पर कुंडली जमाए बैठे सियासी दलों के हुक्मरान चेहरा देखकर राशन वितरित कर रहे है। आखिरकार इंसानियत कब जागेगी।
विश्व में लोकप्रिय और भारतीयों के हरदिल अजीज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस के प्रकोप से बचाने के लिए 22 मार्च 2020 को संपूर्ण भारत में लॉक डाउन किया और देश की जनता को कोरोना संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपील की। 22 मार्च का वो दिन ऐसा था कि जो जहां था वही थम गया। देश के समस्त वाहनों के पहिये जाम हो गये। हवाई—जहाज, रेल, बस, बाजार, फैक्ट्री सब बंद कर दी गई। देश में सभी नागरिकों को घरों में रहने की अपील की गई और सामाजिक दूरी का पालन करने का संदेश जारी किया गया। सरकार के निर्देश तो ठीक रहे। लेकिन इसके पीछे की भयावय तस्वीर देखना बाकी था। रोजगार की तलाश में दूसरे प्रदेशों में भटक रहे देहाड़ी मजदूरी करने वाले लाखों लोग सड़क पर आ गए। उनके सामने रोटी का संकट उत्पन्न हुआ तो सरकार और समाजसेवी संगठनों ने भोजन खिलाया। लेकिन लॉक डाउन के 52 दिनों बाद ही स्थिति देखने के बाद देश की अर्थव्यवस्था पर नजर डाले तो सबकुछ बदल चुका है। निजी प्रतिष्ठानों में कार्य करने वाले कर्मचारियों के घरों में पैंसे नही है। स्वरोजगार करने वाले मध्यमवर्गीय लोगों की हालत खराब है। उच्च श्रेणी का व्यापारी वर्ग अपने कर्ज को लेकर चिंतित है। व्यवसायिक प्रतिष्ठानों से जुड़े लोगों के घरों की माली हालत खस्ता हो चुकी है। विकासशील देश भारत विकसित देशों की श्रेणी में जाने का दावा करने वाले देश की अर्थव्यवस्था की हालत इतनी खराब होगी। किसी ने कल्पना भी नही की होगी। लेकिन ये सच है। इन 52 दिनों के कष्टकारी जीवन के बारे में एक सामान्य नागरिेकों से पूछोगेे तो पता चलेगा कि गरीबी और भुखमरी क्या होती है। लेकिन देश की वर्तमान स्थिति जो संकेत कर रही है, वह भी बहुत कुछ अच्छे नही है। आने वाले दिन और मुसीबत भरे दिख रहे है। कोरोना का संकट टला नही है। स्कूल खुलने की स्थिति में नही है। सरकार कोरोना के अस्पताल बनाने में जुटी है। कोरोना संक्रमण स्टेज 2 को पार करने पर आमादा है। लगातार मरीजों की संख्या बढ़ रही है। कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए कोई वैक्सीन अभी उपलब्ध नही है। ऐसे हालात में देश किन हालातों से होकर गुजरेगा ये सोचकर भी तकलीफ होती है। एक तरफ गरीबी, भुखमरी और दूसरी तरफ कोरोना का संक्रमण होगा। सरकार बेचारगी की स्थिति में होगी। सरकारी अधिकारियों को वेतन देने के लिए पैंसे नही होने के हालात बन सकते है। निजी कर्मचारियों के सामने तो वैसे ही दुखों का पहाड़ है। तो सवाल उठता है कि इस मुसीबत से हम किस प्रकार निकलेंगे। जी हां ये यक्ष प्रश्न है जिसका जबाव सरकार और उनके अधिकारी तलाश रहे है। कोरोना संक्रमण से मुकाबला होना अभी बाकी है। इसलिए अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत रखिए।