बेबाक विचार: क्या संगठन को खल रही है त्रिवेंद्र सिंह रावत की कमी ?




नवीन चौहान.
उत्तराखंड में चल रही सियासी उठापठक के बीच भाजपा में भूचाल उठ रहा है। नया विवाद कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के इस्तीफा दिये जाने की चर्चा के बाद शुरू हुआ है।

ऐसे में अब बात उठ रही है। कि मोदी और अमित शाह की टीम को अब अपनी गलती का अहसास हो रहा होगा। सब जानते हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे संगठन की साख पर सवाल उठे। लेकिन उन्हें बेवजह मुख्यमंत्री पद से हटाकर जरूर भाजपा ने भविष्य तक के लिए सवाल खड़ा कर दिया है। ईमानदार छवि वाले सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत आज तक यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर उन्हें हटाया क्यों गया है। उन्होंने न तो ऐसा कोई कार्य किया ​जिससे पार्टी की छवि पर असर हुआ हो और न ही ऐसा कोई कार्य किया है जिससे जनता में उनका विरोध हुआ हो। तो सवाल यही कि फिर ऐसा क्या हुआ जो चार साल के सफल कार्यकाल के बावजूद उन्हें कुर्सी से हटाया गया।

उन्हें कुर्सी से हटाने के बाद उत्तराखंड में भाजपा की बड़ी ही छीछालेदर हुई है। त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया गया लेकिन उनकी बयानबाजी ने पार्टी को भी शर्मसार होना पड़ा। यही कारण रहा कि चंद दिनों के बाद ही उनकी कुर्सी वापस ले लगी गई। ऐसा नहीं है कि जनता कुछ जानती नहीं है। जनता सब जानती है। बस वह जवाब समय पर देती है। पीआरओ की प्यारी सी चिट्ठी का सच जनता जानती है। आज पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व भी यह सोचने पर मजबूर होगा कि आखिर त्रिवेंद्र सिंह रावत का वो कैसा राजनीतिक कौशल था जिसकी वजह से उनके कार्यकाल में कांग्रेस से आए अति महत्वाकांक्षी बिगड़ैल नेता और पार्टी के भीतर बैठे मगरमच्छ भी खामोश हो गए थे।

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कुछ विधायकों को मंत्री बनने तक के लिए तरसा दिया था। एक बात जरूर थी कि त्रिवेंद्र सिंह रावत में एक अकड़ दिखती थी, यह अकड़ कभी कभी जनता से दूरी का कारण भी बन रही थी। शायद यही वजह रही कि इसी अकड़ और सख्त प्रशासक की छवि के कारण उन्हें बदनाम करने की साजिश रची गई। लेकिन इस बात को छोड़कर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश हित में इतने कार्य किये कि जनता उन्हें हमेशा याद करेगी। चाहे देवस्थानम बोर्ड हो, गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी और कमिश्नरी बनाने का मसला हो, होम स्टे पर हुआ उनके कार्यकाल में बेहतरीन काम हो, घस्यारी कल्याण योजना, महिलाओं को संपत्ति में नाम और अन्य स्वरोजगार के क्षेत्र में त्रिवेंद्र सिंह रावत के काम बेमिसाल थे।

उनके ये ऐसे फैसले थे जिनके बेहतर परिणाम भविष्य में आने तय थे। लेकिन त्रिवेंद्र जी के बाद अभी तक कोई ऐसा फैसला नहीं दिखा जिसकी चर्चा की जा सके। नए महानुभव तो पार्टी की आतंरिक राजनीति को भी मैनेज नहीं कर पा रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने फैसले लिए। जिनके गलत और सही होने की समीक्षा हो सकती है! लेकिन महानुभावों का कोई विजन नहीं दिखा। जिसे जनता देख और पढ़ सके। त्रिवेंद्र सिंह रावत पर विपक्ष सरकार पर एक भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा पा रहा था। भष्टाचार पर सख्त नकेल थी। सवाल एक बार फिर उठ रहा है कि आखिर वो कौन सी वजह थी कि संगठन को त्रिवेंद्र सिंह रावत को कुर्सी से हटाना पड़ा। जनता भी चाहती है कि उनके इस सवाल का जवाब संगठन जरूर दे। जनता के सामने एक बार फिर सब वोट मांगने जाएंगे, उस वक्त भी जनता यह सवाल पूछेगी। अब देखना यही है कि जनता के सवाल का जवाब दिया जाता है या फिर चुप्पी साधी जाती है।



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