इलाहाबाद कुंभ में दिखी संतों की गजब की राजनीतिक लीला




वैष्णव संत महंत धर्म दास हो सकते हैं अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष
महेश पारीक, हरिद्वार। तीर्थराज प्रयाग में समूचे विश्व का दर्शन अर्द्धकुंभ के दौरान हो रहा है। सभी जाति, पंथ, धर्म के लोग प्रयागराज में पुण्य की डुबकी लगा रहे हैं। कोई ज्ञान गंगा में तो कोई त्रिवेणी में। कहीं धार्मिक आयोजन हो रहे हैं तो कहीं जप-तप व अनुष्ठान। कोई शहीदों को यज्ञ के माध्यम से श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा है तो कोई स्वच्छता के संदेश को जीवन में उतारने के लिए लोगों को प्रेरित कर रहा है। नागाओं का संसार तो अनूठा ही है। कोई अपना सर्वस्य त्याग कर संयास धारण कर रहा है तो कोई धूनी रमाए बैठा हैं। इन सबके बीच संतों की गजब राजनैतिक लीलाएं भी देखने को मिल रही हैं। संत सत्ता की कुर्सी का आशीर्वाद भी दे रहे हैं।
इन सब पर प्रयागराज कुंभ में राजनीति की गर्माहाट सबसे अधिक देखने को मिली। श्रद्धा के सागर में भी राजनीति के जंजाल की छाया ने कंुभ के अर्थ को ही बदल दिया। विचारणीय यह कि राजनेता राजनीति करें तो समझ में आता है किन्तु भगवा धारण करने वालों की ऐसे समय में राजनीति समझ से जहां परे है वहीं संतो के इस कृत्य से कंुभ का मूल उद्देश्य भटकता दिखाई दे रहा है। समदृष्टा का ज्ञान देने वाला संत समाज कई खेमों में बंटा दिखाई दिया। कुंभ की व्यवस्था को व्यवस्थित बनाने के लिए गठित की गई अखाड़ा परिषद सबसे अधिक राजनीति गतिविधियों में संलिप्त दिखाई दी। अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि कभी विहिप के तो कभी केन्द्र सरकार के व कभी योगी सरकार के खिलाफ बयान देते नजर आए। वहीं स्ंवय को श्रेष्ठ साबित करने की भी होड़ परिषद के संतों के बीच देखी गई। विहिप की धर्म संसद में दूरी बनाए रखने की घोषणा के बाद अखाड़ा परिषद को मुंह की खानी पड़ी। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि के धर्म संसद से दूरी बनाने के निर्देष के बाद निरंजनी अखाड़े के कई संत विहिप की धर्म संसद में मंच पर दिखाई दिए। जूना अखाड़े के आचार्य मण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज भी मंच पर रहे। परिषद के अध्यक्ष व महामंत्री के अखाड़ों के संतों की विहिप के मंच पर मौजूदगी दर्ज करवाकर परिषद अध्यक्ष व महामंत्री के आदेशों को दरकिनार कर उनकी स्थिति से अवगत करा दिया।
इतना ही नहीं समदृष्टा होने का दंभ भरने वाले संत समाज के मुखिया समय-समय पर योगी आदित्यनाथ की मुखालफत करते नजर आए और सपा के समर्थन में कई बार बयान दिए। वैसे भी महंत नरेन्द्र गिरि सपा के पुराने समर्थक रहे हैं। आज भी उनका मोह सपा के प्रति उतना ही है जितना पूर्व में था। यही कारण रहा कि नरेन्द्र गिरि योगी के विरोध में समय-समय पर दिखाई दिए। केवल मीडिया में फोटो सेशन करवाने के लिए प्रयागराज में योगी की मौजूदगी में उनके आगे-पीछे नाचते दिखे। कुंभ की आड़ में राजनीति करने वाले संतों को आने वाले समय में इसका मतलब समझ आ जाएगा। कारण की योगी भी संत हैं और एक बड़े मठ का संचालन कर रहे हैं। योगी ने संतों के बीच लम्बा समय बिताया है। कुंभ में आम संत परिषद अध्यक्ष के विरोध में भी दिखाई दिए। इस कुंभ के बाद संतों की राजनीति में बहुत कुछ बदलाव देखने को मिलेगा। संत समाज के गलियारों में चर्चाओं के अनुसान अखाड़ा परिषद में भी बड़ा बदलाव होने की प्रबल संभावना दिखाई देने लगी है। संभावना जताई जा रही कि महंत नरेन्द्र गिरि को अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पद से हटाकर नई ताजपोशी की जाएं। संत समाज के सूत्रों से जानकारी मिली है कि रामानंद सम्प्रदाय के महंत धर्म दास संतों की राजनीति के चल रहे भूचाल में अगले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष हो सकते हैं। कारण की संतों में नरेन्द्र गिरि की योग्यता, राजनीति में दिलचस्पी पर सवाल दागे जा रहे हैं। वहीं महंत धर्म दास की योगी आदित्यनाथ के साथ नजदीकियां महंत धर्म दास को अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष बनाने में खासी मददगार होंगी। इतना ही नहीं संतों में चर्चा है कि अखाड़ा परिषद के गठन के 25 वर्षों तक लगातार निरंजनी अखाड़े के महंत शंकर भारती अध्यक्ष रह सकते हैं तो महंत ज्ञानदास के बाद दोबारा रामानंद सम्प्रदाय का संत क्यों अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष नहीं बन सकता है।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *