नवीन चौहान, हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की इलाहाबाद में शुक्रवार को हुई बैठक में चक्रपाणी महाराज व आचार्य प्रमोद कृष्णन्न को फर्जी संत घोषित कर दिया गया है। इससे पूर्व भी अखाड़ा परिषद कई संतों को फर्जी घोषित कर चुकी है।
अखाड़ा परिषद द्वारा उक्त दोनों को फर्जी घोषित करने के बाद एक बार फिर से बबाल मच गया है। संतों का कहना है कि कौन संत है और कौन संत नहीं इसका निर्णय अखाड़ा परिषद किस आधार पर कर रही है। यदि व्यक्ति गृहस्थ है और वह धर्म के अनुसार आचरण करता है तो वह भी संत है। केवल भगवान धारण करने मात्र से ही कोई संत नहीं हो सकता। जिनको फर्जी बताया गया है वह किसी पंथ के नहीं हैं। रहा प्रश्न गृहस्थी का तो रामानंद, उदासीन, निर्मल आदि ऐसे पंथ हैं जहां गृहस्थी भी भगवा धारण कर स्वंय को संत कहते हैं। और समाज में उनका संत के समान ही मान-सम्मान है।
पूर्व में भी अखाड़ा परिषद द्वारा जिस आशाराम, राम-रहीम, रामपाल आदि को फर्जी बताया गया था वह किसी संत परम्परा में नहीं हैं। जब कोई व्यक्ति संत है ही नहीं तो उसे किस आधार पर फर्जी घोषित किया और उसे फर्जी घोषित करने का औचित्य क्या।
उक्त संबध में अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता बाबा बलराम दास हठयोगी का कहना है कि अखाड़ा परिषद को किसी को भी फर्जी कहने का अधिकार नहीं है। यदि अखाड़ा परिषद संत समाज में फैली गंदगी को साफ करने के लिए संजीदा है तो सबसे पहले उसे अखाड़ों के अंदर व्याप्त गंदगी को समाप्त करना चाहिए।
कहा कि अखाड़े कमाई का स्थान बन गए हैं। जिस संतों की तपस्थली पर कभी शंख नाद और आरती के स्वर तथा वेदों की ऋचाएं सुनाई देती थी वहां अब चूड़ियां की खन-खन तथा दीवारों पर सूखती हुई चोलियां दिखाई देती हैं। जहां कभी संतो ंके धूने जलते हुए नजर आते थे वहां अब ऊंची-ऊंची व्यवसायिक इमारतें बन गई हैं। इमारतों को बिक्री कर अखाड़ों के संत मोटी कमाई कर रहे हैं। ऐसे में दूसरे को फर्जी कहने का अखाड़ा परिषद को कोई अधिकार नहीं है।
बाबा हठयोगी ने कहा कि पहले तो अखाड़ा परिषद इस बात को स्पष्ट करे की उसकी दृष्टि में संत कौन है। केवल भगवाधारी, आचरहीन भगवानधारी या फिर धर्म के अनुरूप आचरण करने वाला गृहस्थ। कहा कि केवल भगवाधारण करने मात्र से कोई संत नहीं हो जाता। जो व्यक्ति चाहे वह किसी भी वेशभूषा को धारण करता हो यदि धर्म के अनुरूप आचरण करता है तो वह संत है। श्री हठयोगी ने कहा कि अखाड़ा परिषद को अखाड़ों में व्याप्त गंदगी को सबसे पहले दूर करने के लिए कदम उठाने चाहिए, उसके बाद वह किसी को फर्जी बताएं। कहा कि धर्म की रक्षा करने के बड़े-बड़े दावे करने वाले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष अभी तक देश में कुकुरमुत्तों की तरह फैल चुके फर्जी शंकराचार्यों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा, जो की सनातन धर्म में सर्वोच्च पद कहा जाता है। कहा कि यदि अखाड़ा परिषद धर्म व संत रक्षा के लिए वाकई संजीदा है तो सबसे पहले उसे फर्जी शंकराचार्यों के खिलाफ निर्णय लेना चाहिए। जिससे लगातार क्षय हो रहे धर्म को बचाया जा सके।