हरिद्वार के प्रतिष्ठान मालिक कर रहे कर्मचारियों का उत्पीड़न, नौकरी से निकालने का दे रहे खौफ




नवीन चौहान
हरिद्वार के प्रतिष्ठान मालिक कर्मचारियों का उत्पीड़न करने पर आमादा हो गए है। कर्मचारियों से डयूटी से अलग हटकर घरेलू काम तक कराने लगे है। कर्मचारी अपने आत्मसम्मान को दरकिनार कर मालिक के उत्पीड़न को सहने को विवश है। कुछ मालिकों के उत्पीड़न की बातें बाहर निकलकर आने लगी है। ये सब कुछ कोरोना काल में लॉकडाउन के बाद कारोबार की मंदी के चलते हो रहा है। बेरोजगार ज्यादा और नौकरी कम हो गई है। जिसका सीधा फायदा मालिक उठा रहे है। काम के घंटे बढ़ा दिए और वेतन में कटौती कर दी है। हालांकि इन मामलों की कर्मचारी शिकायत नहीं करते है। नौकरी और जान इंसान को सबसे ज्यादा प्यारी होती है। ऐसे की मजबूर कर्मचारी भी उत्पीड़न होने के बाबजूद चुप है।
लॉकडाउन के बाद से जहां कारोबारियों के कारोबार पर असर पड़ा है तो इसका फायदा कर्मचारियों से निकाल रहे हैं। पहले तो कर्मचारियों की छंटनी की। लॉकडाउन से पहले जहां एक दुकान या होटल या अन्य प्रतिष्ठान पर 4 से 20 कर्मचारी तक काम करते थें, उनमें से आधे को नौकरी से हटा दिया है। लेकिन जो शेष बचे हैं उनका शोषण किया जा रहा हैं। यही हाल सिडकुल या अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में भी देखने को मिल रहा है। अधिकांश प्रतिष्ठान संचालकों ने कर्मचारियों की तनख्वाह 20 से 40 प्रतिशत कम कर दी है। जहां पहले दस हजार रुपये तक देते थे, अब उन्हें मात्र 6 या 8 हजार रुपये तक दे रहे हैं। सबसे बड़ी बात कर्मचारियों की संख्या घटाकर जो शेष बचे हैं, उनसे दोगुना काम लिया जा रहा है। यहां तक कि कार्यालयों या दुकानों की साफ सफाई तक का भी काम उन्हीं कर्मचारियों से लिया जा रहा हैं। ऐसे में यदि कर्मचारी दबी आवाज में विरोध तो करते हैं लेकिन उन्हें जब नौकरी से निकालने की धमकी दी जाती हैं तो कर्मचारी चुपचाप प्रतिष्ठान संचालकों के शोषण को बर्दास्त करने को मजबूर हो जाते है।
प्रतिष्ठानों ने बढ़ाए काम के घंटे
कम कर्मचारी करके ज्यादा काम लेने के लिए प्रतिष्ठान संचालकों ने काम के घंटे बढ़ा दिए है। सुबह से बुलाकर देर शाम तक एक ही कर्मचारी से काम लिया जाता है। औद्योगिक क्षेत्र हो या सिडकुल सभी में यही स्थि​ति देखने को मिल रही है।
परिवार को नहीं दे पा रहे समय
काम ज्यादा लेने या पूरे दिन प्रतिष्ठान पर नौकरी कराने से कर्मचारी अपने परिवार को समय नहीं दे पा रहे हैं। काम के बोझ से जब थककर घर पहुंचते हैं तो बच्चे या पत्नी से बातचीत तक नहीं करते। घूमाने या बाजार जाने तक उनके पास समय नहीं है। ऐसे में वे मानसिक तनाव भी झेल रहे हैं।

 



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