महेश पारीक, हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की इलाहाबाद में शुक्रवार को हुई बैठक में तीन संतों को फर्जी घोषित किया गया। ऐसा कर अखाड़ा परिषद ने संतों की गिरती साख को एक बार फिर से बचाने का प्रयास किया है। अखाड़ा परिषद ने दिल्ली के चर्चित वीरेन्द्र दीक्षित, स्वामी इलाहाबाद की त्रिकाल भवंता और बस्ती के स्वामी सच्चिदानंद को फर्जी घोषित किया है। इसके साथ ही रामानंद सम्प्रदाय से ताल्लुक रखने वाले अलवर राजस्थान के महंत फलाहारी बाबा को भी फर्जी घोषित करने की संभावना है। अगली बैठक में फलाहारी बाबा फर्जी घोषित किए जा सकते हैं।
आश्चर्य की बात तो यह है कि अखाड़ा परिषद ने जिन संतों को पहली और दूसरी सूची में फर्जी घोषित किया है उनमें से अधिकांश किसी भी संत परम्परा के अंतर्गत नहीं आते। जब फर्जी घोषित किए गए संत वास्तव में संत ही नहीं हैं तो उन्हें फर्जी घोषित करने का क्या औचित्य है। वीरेन्द्र दीक्षित, आसाराम बापू, राम रहीम जैसे व्यक्ति किसी भी संत परम्परा में नहीं हैं। न ही उनका किसी आश्रम, अखाड़े से संबंध है। ऐसे में जब व्यक्ति संत परम्परा के अंतर्गत नहीं आता है तो उसे संत कहकर बाद में फर्जी कहने का कारण क्या हो सकता है, यह बड़ा सवाल है। कुल मिलाकर विगत कुछ समय से संतों की गिरती साख को बचाने के लिए अखाड़ा परिषद ने इस प्रकार की मुहिम को छेड़ा है। जब कोई व्यक्ति संत ही नहीं है तो उसे आप फर्जी कैसे कह सकते हैं। वीरेन्द्र दीक्षित, आसाराम बापू, राम रहीम जैसे संत किस परम्परा से हैं यह अखाड़ा परिषद को भी ज्ञात नहीं होगा। फिर ऐसे लोगों को फर्जी जो स्वंय फर्जी हैं, फर्जी घोषित करना करने का उद्देश्य क्या है। अखाड़ा परिषद का त्रिकाल भंवता व स्वामी सच्चिदानंद को फर्जी घोषित करने का सही माना जा रहा है, जो संन्यास परम्परा के अंतर्गत आते हैं।