नवीन चौहान.
हरिद्वार। हमारे धर्म शास्त्रों में 12 कुंभ कल्पित है, जिसमें से चार कुंभ महापर्व प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और त्रयंबकेश्वर नासिक में मनाए जाते हैं और यही चारों कुंभ ही जग विख्यात हैं। शेष कुंभ अज्ञात है और उन पर शोध की आवश्यकता है। महा माखन पर्व के समय लाखों श्रद्धालु यहां कर महा मानसरोवर और कावेरी नदी में स्नान करके दान धर्म कर्म आदि करते हैं।
श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी की महामंडलेश्वर स्वामी सोमेश्वरानंद जी महाराज ने बताया कि इन चार कुंभ पर्व के अतिरिक्त 5 वां कुंभ भी शोध में सामने आया है। जिसे केवल दक्षिण भारत के साधु संत और जनता जनार्दन ही मनाते हैं। यह पांचवा कुंभ महापर्व तमिलनाडु में चिदंबरम के पास कुंभकोणम नामक स्थान में महामाखन पर्व के नाम से मनाया जाता है। कुंभकोणम के संस्कृत नाम कुंभकोणम है यह भी अपने 12 वर्ष हीं मनाया जाता है ।
कुंभकर्ण के महामाखन पर्व की कथा इस प्रकार है। ब्रह्मा ने एक ऐसा कुंभ कलश बनाया जिसमें अमृत संचित कर रखा था। इस कुंभ की घोषा, नासिका किसी कारण से खंडित हो गई इसके कारण अमृत घड़े से बाहर फैल गया और वहां की भूमि अमृतमय हो गई यहां तक कि 5 कोस तक का भूभाग अमृत मय हो गया ।
पुराणों के अनुसार अमृत और विष सृजन के बीजों से भरा कुंभ कलश जल प्रलय के समय कुंभकोणम नामक स्थान में आकर ठहर गया । शिकारी के भेष में शिव जी ने तीर मारकर घड़े को फोड़ दिया और इस प्रकार महामाखन सरोवर में अमृत भर गया। महा माखन के दिन गंगा, यमुना, सरस्वती, सरयू, गोदावरी, नर्मदा, सिंधु , कावेरी, महानदी आदि नदियों के पावन ललित स्त्रोत माखन माखन सरोवर में तय होते हैं, तथा समस्त देवी देवता निवास करते हैं। महा माखन पर्व के समय लाखों श्रद्धालु यहां कर महा मानसरोवर और कावेरी नदी में स्नान करके दान धर्म कर्म आदि करते हैं।