शादी करके आदमी हो जाता है डरपोक, जानिए पूरी खबर




नवीन चौहान,

हरिद्वार। पुरानी कहावत है कि शादी वो लड्डू है जो खाता है वो भी पछताता है और जो नहीं खाता है वो भी पछताता है। सदियों पुरानी इस कहावत के पीछे हमारे पूर्वजों के काफी अनुभव रहे होंगे। लेकिन उन्होंने ऐसा क्यो कहां ये बात एक रहस्य है। इस रहस्य को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। फिर भी हम इस रहस्य से परदा उठाने का प्रयास करते है। जिसके लिये हमने कुछ कुंवारे और शादी शुदा लोगों से बातचीत की। उनके अनुभवों को जाना। पता चला कि ये बात तो वास्तव में बहुत रहस्यमयी है। तो ये माने कि हमारे पूर्वज बहुत विद्वान थे। उनकी विद्वतता के आगे कंप्यूटर भी फेल है। लेकिन पूरा सच ये है कि शादी करके आदमी डरपोक हो जाता है। परिवार को सुरक्षित रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उसको कई मामलों में समझौता करने को विवश करती है। सामाजिक और आर्थिक तौर पर शादीशुदा आदमी कुंवारे आदमी की तुलना में निर्णय देरी से लेता है। जबकि कुंवारा आदमी एक क्षण में ही वो फैसला ले लेता है, जिसके परिणाम से वो पूरी तरह अनभिज्ञ होता है। फिर चाहे परिणाम कुछ भी रहे।
अब हम आपकों पूरे विस्तार से इस विषय को बताते है। जब एक बच्चा बाल्यावस्था को छोड़कर किशोरावस्था में प्रवेश करता है तो उसकी जिंदगी जीने की रफ्तार बहुत तेज होती है। वह सभी काम जल्दबाजी में करता है। उस समय उस बालक का पिता उसको धैर्य रखने का ज्ञान बांटते है। तब वो बच्चा पिता को ही सुस्त समझाने लगता हैं। पिता अपने अनुभवों को देखते हुये बच्चे को समाज में जीने का तौर तरीका समझाते है तो वह पिता को ही समझाने लगता है। 18 वर्ष की आयु पार करने के बाद जब किशोरावस्था की दहलीज लांघने के बाद वह बालिक होता है तो खुद को पूरी तरह से समझदार मानकर फैसले लेता है। बालिग युवक समाज को अपनी नजरिये से देखता है। दोस्तों की मित्र मंडली में सभी बालिग खुद को एक ताकतवर के रूप में प्रस्तुत करते है। उस युवक की स्पीड और तेज हो जाती है।

या यूं कहे की जिंदगी को सुपरफास्ट स्पीड में दौडा़ने लगता है। उम्र 21 से पार हुई तो वही युवक अब एक आदमी के तौर पर समाज में झटपट फैसले लेता है। आदमी की संगति ठीक है तो पिता को कोई डर नहीं। यदि संगति खराब है तो पिता को डर सताने लगता है। एक पिता अपने बेटे की स्पीड पर ब्रेक लगाने के लिये शादी की तैयारी शुरू कर देता है। पिता को लगता है कि शादी होने के बाद उसका बच्चा समझदार हो जायेगा। दूसरे अर्थ में कहे तो शादी के बाद वह डरपोक हो जायेगा। परिवार की जिम्मेदारी को समझने लगेगा। खुद पिता बनेगा तो जिम्मेदारी का एहसास ज्यादा होगा। इस सब बातों को ध्यान में रखकर उस तेज स्पीड में दौड़ने वाले बालक को शादी के बंधन में जकड़ दिया जाता है। उसी शादी शुदा आदमी से जब तीन साल मिले तो वो एक बच्चे का पिता बन चुका था। उसकी स्पीड बहुत स्लो थी। वह परिवार की जिम्मेदारियों का पालन करने और उनको सुरक्षित रखने के चक्कर में पूरी तरह से डरपोक हो चुका था। मित्र मंडली में बड़ी-बड़ी डींगे हांकने वाला वह फुल स्पीड का युवक बेहद ही डरपोक किस्म का आदमी बन चुका था।
शादीशुदा आदमी ने अपने अनुभव के तौर पर बताया कि अपने आसपास के समाज में बहुत कुछ गलत घटित होने के बाद भी आंख और मुंह बंद करके रहना पड़ता है। कारण है कि परिवार की सुरक्षा से वह खतरा मोल नहीं लेना चाहता है। वही कुंवारे आदमी ने बताया कि वह किसी से नहीं डरता है। दोस्तों ने जो कहा वह उसको झटपट मान लेता है। समाज में उसे किसी से कोई डर नहीं लगता है। उसने कहा कि शादी एक बंधन है। आदमी की आजादी खतरे में पड़ जाती है।



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