पीड़ा में पहाड़: घोषणा के तीन साल बाद भी परवान नहीं चढ़ी गैरसैण राजधानी: VIDEO




नवीन चौहान.
प्रदेश की सरकारें एक तरफ तो पहाड़ के विकास की बात करती हैं और वहीं दूसरी और पहाड़ों के विकास के लिए उठाए जाने वाले जरूरी कार्यों की अनदेखी भी करती है। प्रदेश की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने तीन साल पहले गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने की घोषणा की थी लेकिन घोषणा के तीन साल बाद भी इसे परवान नहीं चढ़ाया जा सका। जबकि गैरसैंण को विकसित करने के लिए 10 साल में करीब 25 हजार करोड़ रूपये खर्च करने की बात कही गई।

अधिसूचना हो गई थी जारी
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 4 मार्च, 2020 को गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया था, घोषणा ही नहीं उन्होंने इस प्रस्ताव को विधानसभा में पारित कराकर राज्यपाल से अनुमोदन भी कराया और विधिवत अधिसूचना जारी करवाई। इसके पश्चात उन्होंने 20वें राज्य स्थापना दिवस पर गैरसैंण में ही 10 वर्षों में लगभग 25 हज़ार करोड़ रूपए से गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी परिक्षेत्र का सुनियोजित और क्रमबद्ध विकास किए जाने की घोषणा की।

इस तरह होता गैरसैंण का विकास
ये विकास की गंगा हेलीपोर्ट, जिला स्तरीय चिकित्सालय, मिनी सचिवालय, चोरड़ा झील, गैरसैंण तक पहुंचने वाले सभी मार्गों को डबल लेन किए जाने, चौखुटिया हवाई पट्टी भू अधिग्रहण, बेनीताल एस्ट्रो विलेज योजना आदि अनेक कार्यों से बहना आरंभ भी हो गई थी। नियति ने त्रिवेंद्र जी के स्थान पर तीरथ सिंह रावत जी और उसके बाद पुष्कर सिंह धामी जी को सूबे की कमान सौंप दी। मार्च 2021 से ही गैरसैंण क्षेत्र के विकास कार्यों को प्राथमिकता मिलनी बंद हो गई।

… तो दिखाई देने लगते परिणाम
जानकार मानते हैं कि यदि त्रिवेन्द्र जी की योजनानुसार इसका विकास यथावत जारी रहता तो आज उसके सुपरिणाम दिखाई देने लगते। आज गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा के 3 वर्ष पूरे हो रहे हैं। आज आवश्यकता है प्रदेश के हर हिस्से से इसके विकास को समर्थन देने की। त्रिवेन्द्र जी के शब्दों में “गैरसैंण पहाड़ की पीड़ा का, दशकों के संघर्ष का प्रतीक है।” हमारे पूर्वजों ने जो हरे भरे विकसित उत्तराखंड का सपना देखा था, उसकी शुरुवात गैरसैंण से ही संभव है। ये बात इन 22 सालों के बाद और भी सिद्ध हो गई है।

गैरसैंण पर ही फोकस क्यों ?
सीमांत जनपद चमोली में स्थित उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी जो कभी सपना रही हमारे पूर्वजों का, उनके उत्तराखंड की राजधानी का। जहां से सारे पर्वतीय ज़िलों और गांवो का संतुलित सुनियोजित विकास होता। वो गैरसैंण जब सत्ता का केंद्र होता, तो सभी नेता, अफसर, कर्मचारी का सपना होता कि एक घर गैरसैंण या उसके निकट कहीं बनाना है। उच्च कोटि के सरकारी अस्पताल, विद्यालय महाविद्यालय, अन्य शिक्षण संस्थान वहीं कहीं आसपास होते। जनता व पर्यटकों के मंनोरंजन के लिए इको पार्क, सांस्कृतिक केंद्र, सिनेमा, रेस्टोरेंट खुलते। नौजवानों के खेलकूद को पर्याप्त स्टेडियम, इंडोर कोर्ट आदि होते।

पर्यटन को मिलता बढ़ावा
वीकेंड में परिवार या दोस्तों के साथ घूमने को, मौज मस्ती को चारों ओर कुछेक घंटे की दूरी पर एडवेंचर पार्क होते, मंदिर या ट्रैकिंग डेस्टिनेशन होते, योग और प्राकृतिक चिकित्सा के लिए वेलनेस सेंटर होते आदि आदि। ये सब गैरसैंण राजधानी परिक्षेत्र में होता तो निश्चित ही मोबाईल टावर के साथ साथ ऑप्टिकल फाइबर से हाई स्पीड इंटरनेट सुविधा भी होती। हेलीपोर्ट पर पर्यटकों की आवाजाही रहती जो दूर दूर तक अनसुनी जगहों पर जाया करते, होम स्टे में रुका करते, अपना शोध, अपना उपचार, अपनी साधना करते।

पर्वतीय संस्कृति के अनुसार होता विकास
इसी प्रकार गैरसैंण से प्रतियोगिता करते अन्य ब्लॉक और तहसील केंद्र। वहां भी विकास पहुंचता किंतु पर्वतीय शैली में, पर्वतीय संस्कृति के अनुसार। जो उत्तराखंड आता उसे लगता, राजधानी गैरसैंण नहीं देखी तो उत्तराखंड नहीं देखा। इस प्रकार पहाड़ी भाषा, संगीत, संस्कृति, खान पान, साहित्य, इतिहास, पहाड़ी लोगों के अधिक निकट वो पहुंच पाता, उनको अधिक समझ पाता।



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