मशरूम पौष्टिक ही नहीं औषधि भी, भरपूर मात्रा में होता है विटामिन डी




मेरठ।
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण का गुरूवार को समापन हो गया। यह प्रशिक्षण मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन के वित्तीय सहयोग से आयोजित की गई।

सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौ‌द्योगिकी विश्वविद्यालय के मशरूम प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र पर आयोजित इस तीन दिवसीय कार्यशाला में ढींगरी, मिल्की, शीटाके, कीडाजड़ी एवं स्प्लिट गिल्स के औषधीय महत्व तथा उत्पादन तकनीक के साथ साथ प्रबंध पर चर्चा की गई।

प्रशिक्षण ​शिविार के ऑर्गेनाइजर डॉ. गोपाल सिंह ने बताया की मशरूम एक विशेष भोजन है, जिसमें पोषण और औषधि दोनों गुण होते हैं। प्राचीन समय में केवल चीन और जापान के विशेषाधिकार प्राप्त लोगों द्वारा ही मशरूम खाया जाता था। उन्होंने बताया कि मशरूम तकनीकी रूप से सब्जी नहीं है लेकिन यह सब्जियों की तरह ही कई पौष्टिक लाभ प्रदान करता है। जिसके कारण इन्हें सब्जियों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। प्रशिक्षण कार्यक्रम के संयोजक डॉ. गोपाल सिंह ने बताया कि इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण में प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए 22 ने भाग लिया। इन प्रतिभागियों को मशरूम प्रयोगशाला में प्रयोगात्मक कार्य करा कर दक्ष बनाया गया।

समापन समारोह अध्यक्षता करते हुए निदेशक शोध डॉ. अनिल सिरोही ने कहा कि मशरूम अपने पोषण मूल्यों के कारण बहुत अधिक उपयोगी है क्योंकि इसके अंदर सूक्ष्म पोषक तत्व भरे हुए हैं इसलिए इसको सुपरफूड्स के रूप में भी जाना जाता है।

निदेशक प्रसार डॉ. पीके सिंह ने मशरूम उत्पादन को रोजगारपरक कार्य बताया उन्होंने कहा कि मशरूम उत्पादन करके किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं। विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित वित्त नियंत्रक लक्ष्मी मिश्रा ने अपने संबोधन में कहा कि अब मशरूम की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, क्योंकि लोगों के बीच में मशरूम के औषधि गुण की पहचान हुई है। जिसके कारण लोगों ने इसका सेवन करना प्रारंभ कर दिया है।

निदेशक प्रशिक्षण एवं नियोजन डॉ. आरएस सेंगर ने कहा के मशरूम एकमात्र विटामिन डी युक्त सब्जी है जो कैल्शियम और फास्फोरस के अवशोषण और मेटाबॉलिज में भी सहायता प्रदान करती है, इसलिए मशरूम में प्राकृतिक इंसुलिन और एंजॉय भी मौजूद होते हैं जो भोजन में शर्करा या स्टार्स को तोड़ने में मदद करते हैं, जिससे मधुमेह का नियंत्रण भी हो सकता है। इसलिए जागरूक लोगों ने0 मशरूम का सेवन शुरू कर दिया है।

कार्य कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष डॉ. कमल खिलाड़ी, डॉ चंद्रभानु, डॉ पीके सिंह डॉ राजेंद्र सिंह, प्रदीप कुमार वर्मा, आयुषी श्रीवास्तव, अरविंद यादव आदि शोध छात्रों एवं छात्राओं का विशेष योगदान रहा।



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