उत्तराखंड में निजाम बदले पर नहीं बदला चरित्र, जानिये पूरी खबर




नवीन चौहान, हरिद्वार। उत्तराखंड की सत्ता में निजाम के नाम बदले, चेहरे बदले पर चरित्र नहीं बदला। सत्ता के सिंघासन पर जो भी बैठा उसने उत्तराखंड की जनता का दर्द नहीं समझा। प्रदेश की जनता को पलायन का दंश झेलना पड़ा। पहाडों का विकास नेताओं की महत्वकांक्षाओं की भेंट चढ़ गया है। सत्ता पर काबिज मंत्रियों ने वोट बैंक की खातिर निर्णय किये। दूसरी राजनैतिक पार्टी के निर्णयों को बदलने का कार्य किया। लेकिन राज्य का विकास कहीं बहुत पीछे छूट गया। 17 सालों से मुखिया और मंत्री स्थायी राजधानी गैरसैंण के मुद्दे पर अटके हुये हैं। 17 सालों में प्रदेश आज भी केंद्र के कर्ज में डूबा हुआ है। राज्य सरकारों के पास प्रदेश को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिये कोई ठोस प्लान नहीं है। बेरोजगारी इस राज्य की प्रमुख समस्या बन गई है। सरकार के पास जनता को देने के लिये सिर्फ वायदों के अलावा कुछ खास नहीं है। डबल इंजन की भाजपा सरकार का पहिया भी जाम हो गया है।
उत्तराखंड राज्य का गठन साल 2000 में एक आंदोलन के फलस्वरूप हुआ था। उत्तराखंड प्रेमियों ने राज्य गठन की मांग को लेकर अपने प्राणों की आहूति दी। वृहद स्तर पर जनआंदोलन किया। उत्तराखंड प्रेमियों का जनसैलाब उमडा। यूपी के मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड में छाती पर गोलियां खाई। जिसके बाद उत्तराखंड राज्य को अपना अस्तित्व मिला। हिमालय की चोटियां और तीर्थाटन वाले इस प्रदेश में नया मुखिया विराजमान हुआ। प्रदेश के पहले मुखिया का सत्र को बधाईयों और शुभकामनाओं में ही निकल गया। चुनाव हुये तो कांग्रेस की सरकार बन गई। कांग्रेस के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी बने जो कि विकास पुरूष के नाम से विख्यात थे। उन्होंने सिडकुल की स्थापना कर रोजगार की समस्या को हल करने की ठान ली। राज्य के लोगों को 70 फीसदी रोजगार दिये जाने का कानून पारित किया। इस सिडकुल के अलावा उत्तराखंड में किसी मुखिया के पास बताने के लिये कुछ नहीं है। बस तब से लेकर आज 17 सालों तक कुर्सी की खींचतान जारी है। इस राज्य को एक बार राष्ट्रपति शासन भी देखना पड़ गया। इन 17 सालों में विकास तो कहीं बहुत पीछे छूट गया है। प्रदेश की जनता ने तो अपने मुखिया के चेहरे बदलते देखे है। लेकिन जनता की बात करें तो एक ही बात निकलकर आती है कि चेहरे बदले है चरित्र नहीं।

भ्रष्टाचार की दीमक भी लग गई
उत्तराखंड राज्य में भ्रष्टाचार की दीमक भी लग गई है। राज्य में एक के बाद एक कई घोटाले सामने आये। सबसे चर्चित घोटाला नेशनल हाईवे का आया। जिसमें पीसीएस रैंक के अधिकारी जांच के घेरे में है। इसके अलावा राज्य में कई बडे घोटाले सामने आये। जिनकों राजनेताओं ने अपने नफे नुकसान के अनुसार तोड़ा मरोडा गया। इस हालात में राज्य में विकास की कल्पना करना किसी दिव्य स्वप्न से कम नहीं है।
17 सालों में 9 निजाम
राज्य में 17 सालों में कई अनुभवी राजनेताओं ने सत्ता की कुर्सी को संभाला। पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी, नारायण दत्त तिवारी, भगत सिंह कोश्यारी, भुवनचंद खंडूरी, रमेश पोखरियाल निशंक, भुवन चंद्र खंडूरी, विजय बहुगुणा, हरीश रावत, और वर्तमान में त्रिवेंद्र सिंह रावत राज्य की कमान संभाले हुये हैं। 17 सालों के अतीत में जाकर देखें तो इन नेताओं के पूर्व मुख्यमंत्री का बोझ राज्य की जनता को वहन करना पड़ रहा है। पर राज्य के लिये दूरगामी सोच किसी नेता में दिखाई नहीं दी। राज्य का विकास नैपथ्य में चला गया। वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत प्रदेश को ऊंचाई पर ले जाने के लिए कोई ठोस प्लान प्रस्तुत नहीं कर पाये हैं। उनका पूरा फोकस जीरो टोलरेंस पर टिका है। यदि राज्य में जीरो टोलरेंस ही लागू हो जाता है तो कम से कम राज्य को भ्रष्टाचार से तो मुक्ति मिल जायेगी।



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