DAV में पदमश्री पूनम सूरी बोले वेदों का ज्ञान बनाएगा भारत को विश्व गुरू




नवीन चौहान
पदमश्री पूनम सूरी ने कहा कि शिक्षा, संस्कार, संस्कृति और वेदों के ज्ञान से परिपूर्ण युवा शक्ति भारत को विश्व गुरू बनायेंगा। महात्मा हंसराज ने वैदिक ज्ञान का जो दीप प्रज्जवलित किया उसकी सुगंध आज संपूर्ण विश्व में महक रही है। डीएवी स्कूलों का उददेश्य वैदिक​ ज्ञान देकर राष्ट्र निर्माण के लिए श्रेष्ठ नागरिक तैयार करता है। कहा कि स्वामी दयानंद के विचारों को घर-घर पहुंचाना है। इसके लिए डीएवी के सभी स्कूलों में बच्चों को कर्तव्य के ज्ञान की सीख दी जाती है।

उक्त बात उन्होंने महात्मा हंसराज के जन्मोत्सव अवसर पर डीएवी सेंटेनरी स्कूल जगजीतपुर में आयोजित समर्पण दिवस कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में कही। कार्यक्रम में स्वामी दयानंद के विचारों को आत्मसात कर वेदों के प्रचार का संकल्प लिया गया।

आर्य प्रादेशिक प्रतिनिधि सभा एवं डीएवी प्रबंधकत्र्री समिति के तत्वाधान में डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल, जगजीतपुर में समर्पण दिवस का आयोजन बड़े ही भव्यता और दिव्यता के आयोजित किया गया। करीब दस हजार से अधिक गणमान्यों की उपस्थिति में वैदिक महा कुम्भ का समागम हुआ।

आर्य प्रादेशिक प्रतिनिधि सभा एवं डीएवी प्रबंधकत्र्री समिति के प्रधान पद्मश्री डॉ.पूनम सूरी जी, डीएवी काॅलेज प्रबन्धकत्र्री समिति के उपप्रधान, निदेशक, क्षेत्रीय निदेशक, देश के विभिन्न राज्यों से आए 948 से अधिक डीएवी शिक्षण संस्थानों के प्रधानाचार्य तथा गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

समर्पण दिवस कार्यक्रम का आयोजन 22 अप्रैल 2023 की संध्या बेला में आर्य रत्न, प्रधान आर्य प्रादेशिक प्रतिनिधि सभा एवं डीएवी प्रबंधकत्र्री समिति, पद्मश्री डाॅ पूनम सूरी जी तथा उनकी पत्नी श्रीमती मणि सूरी जी के आगमन पर शुरू हुआ। पदमश्री पूनम सूरी और उनकी धर्मपत्नी का माल्यापर्ण कर और पुष्प गुच्छ देकर डीएवी स्कूल प्रधानाचार्य मनोज कपिल व संस्था के पदाधिकारियों ने स्वागत किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ डीएवी प्रांगण की यज्ञशाला में हवन यज्ञ से किया गया। मुख्य यजमान पदमश्री पूनम सूरी व उनकी पत्नी मणि सूरी ने पद पर आसीन होकर यज्ञ ज्योति को प्रकाशित किया तथा हवन यज्ञ में आहूति दी। जिसके बाद विभिन्न आर्य समाज के लोगों पर पुष्पवर्षा की गई। डीएवी प्रांगण वेदों से गुंजायमान हुआ।

समर्पण दिवस पर आयोजित समारोह का शुभारंभ असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। डीएवी हरिद्वार, डीएवी देहरादून तथा बीएम डीएवी हरिद्वार के अध्यापक एवं अध्यापिकाओं ने ‘चमका जहाँ में तू बनकर अटल सितारा’ भजन प्रस्तुत किया। समस्त जनसमूह ने डीएवी गान, डीएवी जय-जय के सुर में सुर मिलाए।

डॉ पूनम सूरी जी ने “हे प्रभु दुर्गुण मेरे हर लीजिए” भजन के माध्यम से ईश्वर से दुर्गुणों को दूर कर शुभ गुण देने की प्रार्थना की। डाॅ पूनम सूरी जी ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि समर्पण दिवस कार्यक्रम वेदों के ज्ञान का महाकुंभ है। महात्मा हंसराज के विचारों और उनके लक्ष्यों के अनुरूप कार्य करने का संकल्प लेने का अवसर है। स्वामी दयानंद के विचारों को घर-घर पहुंचाना डीएवी का लक्ष्य है।

उन्होंने कहा कि विद्या पर धर्म का कोई अंकुश नहीं होना चाहिए, डीएवी संस्था वैदिक मूल्यों को साथ लेकर चलती है। योगाभ्यास के साथ वेद प्रचार का कार्य भी अनवरत जारी रहना चाहिए। जब तक आर्य समाज के विचार और सिद्धांतों को युवा पीढ़ी आत्मसात नही करेंगी तब तक हमारा देश सोने की चिड़िया नहीं बन सकता। वेद हमारे चरित्र को उज्ज्वल बनाते है। उन्होंने कहा कि धर्म कोई संप्रदाय नहीं है, धर्म सिर्फ एक कर्तव्य है, नियम है, आप सभी अपने बच्चों को कर्तव्य का ज्ञान दो ताकि वह राष्ट्र निर्माण में और भारत को विश्व गुरु बनाने में अपना योगदान दे सकें। डीएवी का हर शिक्षक धर्म शिक्षक है।

उन्होंने कहा कि तप का असली अर्थ कर्म करना है। डीएवी स्कूलों में यज्ञ तथा वेद प्रचार का कार्य किया जा रहा है। डीएवी संस्था के सभी प्रधानाचार्य कर्म कर रहे हैं तभी डीएवी संस्थाएं राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। डॉ. पूनम सूरी जी ने महात्मा हंसराज जी के जीवन व्यक्तित्व पर प्रकाश डाल। कहा कि महात्मा हंसराज त्याग, तपस्या और बलिदान की प्रतिमूर्ति थे।

उन्होंने हंसराज के व्यक्तित्व का एक तिनके के रूप में उदाहरण देते हुए कहा कि एक तिनका अटका तो कई और तिनके अटक गए। नदी के किनारे मिटटी उड़ी तो वह भी तिनके पर अटक गई। मिटटी और तिनके मिलकर टापू बन गए। ऐसे कई टापू बने और द्धीप का आकार ले लिया। इस द्धीप पर लोगों ने झोपड़ी डाल दी। वो द्धीप महात्मा हंसराज जी का व्यक्तित्व है।

उन्होंने शिक्षा और संस्कारों की अलख जगाने के लिए दो सन 1886 में लाहौर में दो कमरों को मांग कर लिया। जिसका स्वरूप आज 948 स्कूल, कॉलेजों के रूप में डीएवी संस्था स्थापित हो गई। जिसकी पताका आज पूरे विश्व में लहरा रही है। 34 लाख बच्चे डीएवी में पढ़ रहे है। एक लाख से अधिक स्टॉफ है। 40 लाख से अधिक एल्यूमिनाई है। वो तिनका इतना बड़ा द्धीप बन गया है। अकेले आए थे और कारवां बनता चला गया। महात्मा हंसराज जी ने स्वामी दयानंद के विचारों से प्रेरणा लेकर बिना वेतन कार्य करने का निर्णय लिया था।

डीएवी का मकसद शिक्षा देना नहीं था। अपितु स्वामी दयानंद के अधूरे कार्य को पूरा करना है। दयानंद के विचारों को घर—घर पहुंचाना है। महात्मा हंसराज जानते थे कि शिक्षा के साथ—साथ आर्य समाज भी समाज को देना है। इसीलिए देशभर में डीएवी संस्थाए महात्मा ​हंसराज की सोच और उनके विचारों को धरातल पर उतारने का कार्य कर रही है। इस अवसर पर उन्होंने आर्य जगत और आर्य हेरिटेज नामक दो पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।

विशिष्ट सम्मान
कार्यक्रम में प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा, कुलपति, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय एवं विनय आर्य महासचिव आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली को विशिष्ट सम्मान से अलंकृत किया गया। स्वामी विवेकानंद सरस्वती जी कुलाधिपति गुरुकुल प्रभात आश्रम, मेरठ ने अपने आशीर्वचनों की वर्षा की।



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