निजी स्कूलों में सुलग रही चिंगारी, तालाबंदी की तैयारी




हरिद्वार। उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय के निजी स्कूलों की कॉशन मनी और रि-एडमिशन फीस को बंद करने के फरमान के बाद एनुवल चार्ज को लेकर निजी स्कूलों में चिंगारी सुलगने लगी है। पूरे प्रदेश के निजी स्कूल एकजुट होकर एक जुलाई से स्कूल की तालाबंदी कर चाबी शिक्षा मंत्री को सौंपने का मन बना रहे है। शिक्षा मंत्री के आदेश के बाद से अभिभावक निजी स्कूलों के खिलाफ मोर्चा खोले हुये है। अभिभावक स्कूलों पर शिक्षण शुल्क वापिस करने का दबाव बना रहे है। जबकि निजी स्कूलों के संचालकों के अपने-अपने तर्क है। उनका कहना है कि महज फीस के बलवूते स्कूल के शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन की पूर्ति नहीं होती है। ऐसी स्थिति में वह परीक्षा शुल्क, भवन खर्च, स्मार्ट क्लासेज, खेल मैदान और अन्य सुविधाओं की पूर्ति करना मुश्किल है।
प्रदेश में भाजपा के सत्ता पर काबिज होते ही शिक्षा मंत्री की कमान अरविंद पांडेय को मिल गई। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने कुर्सी संभालते ही निजी स्कूलों के खिलाफ कॉशन मनी और रि-एडमिशन फीस को बंद करने का आदेश जारी कर दिया। इस आदेश का पूरी तरह पालन कराने की जिम्मेदारी संबंधित जिले के जिलाधिकारी और शिक्षा विभाग को सौंप दी। जब हरिद्वार के शिक्षा विभाग ने सभी स्कूलों से रि-एडमिशन फीस और कॉशन मनी के संबंध में जानकारी जुटाई तो पता चला कि कनखल के एक स्कूल को छोड़कर कोई अन्य स्कूल कॉशन मनी नहीं लेता है। जबकि रि-एडमिशन फीस को तो पहले से ही नहीं ली जाती है। शिक्षा विभाग की इस पड़ताल के बाद अभिभावकों ने आपत्ति दर्ज कराई की निजी स्कूलों ने रि-एडमिशन फीस का नाम बदलकर एनुवल चार्ज कर दिया है। प्रतिवर्ष खर्च के नाम पर निजी स्कूल एनुवल चार्ज ले रहे है। अब सवाल उठता है कि एनुवल चार्ज लिया जाना चाहिये या नही। तो स्कूल के संचालकों का कहना कि प्रतिवर्ष बच्चों को जो सुविधाये दी जाती है। वह इस एनुवल धन राशि से ही खर्च होती है। बच्चों से लिये जाने वाले शिक्षण शुल्क से महज शिक्षकों का वेतन और स्टाफ का खर्च ही निकलता है। भवन का मेंटीनेंस, बिजली, पानी, खेल मैदान का रख रखाव और बच्चों के उत्साहवर्द्वन के लिये आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों का खर्च एनुवल चार्ज से मिलने वाली राशि से होता है। निजी स्कूल संचालकों का कहना है शिक्षा विभाग फीस का तो हिसाब पूछ रहा है लेकिन खर्च का ब्यौरा नहीं ले रहा है। जब स्कूलों का बाकायदा आॅडिट होता है तो वो रिपोर्ट भी शिक्षा विभाग को लेनी चाहिये। इस बात को लेकर निजी स्कूल संचालकों में चिंगारी सुलग रही है। स्कूलों में तालाबंदी करने को लेकर कई दौर की बैठक हो चुकी है। गर्मी की छुट्टियों के बाद आगामी एक जुलाई से एक बार फिर शिक्षण कार्य प्रारम्भ होगा। लेकिन इस बार हो सकता है कि स्कूलों में तालाबंदी हो और चाबी मंत्री महोदय के कक्ष में हो।
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मानव संसाधन मंत्रालय की गाइड लाइन जरुरी
हरिद्वार। मानव संसाधन मंत्रालय की गाइड लाइन जारी नहीं होने की वजह से निजी स्कूल और राज्य सरकार के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। बता दे कि निजी स्कूल सीबीएसई बोर्ड से मान्यता प्राप्त होते है। जिसकी गाइड लाइन मानव संसाधन मंत्रालय जारी करता है। निजी स्कूलों की फीस के लिये मानक भी सीबीएसई ही तय करता है। जबकि राज्य सरकार स्कूल खोलने के लिये एनओसी जारी करती है। शिक्षा का अधिकार लागू कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। जिसकी संस्तुति शिक्षा विभाग करता है। जब स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट है तो मानव संसाधन मंत्रालय को गाइड लाइन जारी कर रिडमिशन फीस, कॉशन मनी और एनुअल चार्ज को लेकर भ्रम दूर किया जाना चाहिये था।
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शिक्षा विभाग भी ले रहा कॉशन मनी
हरिद्वार। भले ही शिक्षा विभाग कॉशन मनी को लेकर निजी स्कूलों पर कार्रवाई करने का मन बना रहा हो। लेकिन हकीकत में तो शिक्षा विभाग भी निजी स्कूलों से कॉशन मनी के रुप में एक मुश्त धनराशि स्कूलों से जमा करा रहा है। जब अभिभावकों की आवाज उठी तो शिक्षा विभाग को भी अपने नियमों में बदलाव करना पड़ेगा। जब निजी स्कूल कॉशन मनी नही ले रहा है तो शिक्षा विभाग को भी निजी स्कूलों की कॉशन मनी को लौटाना चाहिये।


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