नवीन चौहान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की मुलाकात यूं ही नहीं होगी। 35 मिनट की इस मुलाकात में जरूर कुछ बात तो खास होगी। एक तरफ जहां उत्तराखंड में बैकडोर नियुक्ति और तमाम परीक्षाओं को लेकर भाजपा सरकार की फजीहत हो रही है। भाजपा सरकार के मंत्री जनता के निशाने पर है। उत्तराखंड की जनता सड़कों पर उतरकर आंदोलन कर रही है। वही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नडडा उत्तराखंड के एक पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाकात कर रहे है। त्रिवेंद्र सिंह रावत की माने तो शिष्टाचार मुलाकात है। पार्टी स्तर पर इस तरह की मुलाकात होती रहती है। शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात करना और उनका मार्गदर्शन लेना रूटिन कार्यो में है। वही सियासी जानकारों की माने तो शिष्टाचार मुलाकात के पीछे की सियासत बहुत गंभीर होती है। इन्ही मुलाकातों के बाद अटकलों का दौर लगता है।
बताते चले कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद का कार्यकाल बेदाग रहा था। त्रिवेंद्र सिंह रावत को ईमानदारी का पक्षधर होना भारी पड़ा। जिसके चलते उनकी पारदर्शी सरकार अचानक से अस्थिर हो गई। भाजपा के ही विधायकों की बेरूखी का सामना त्रिवेंद्र सिंह रावत को करना पड़ा। उनको बिना किसी गलती की सजा मिली और मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी।
भाजपा हाईकमान का निर्णय त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शिरोधार्य किया और हाईकमान के एक आदेश पर तत्काल इस्तीफा देने राज्यपाल के पास पहुंच गए। लेकिन मुख्यमंत्री पद की कुर्सी से हटाने की वजह शायद ही त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद समझ पाए। विधायकों और मंत्रियों की नाराजगी का कारण भी वह नही जान पाए। मुख्यमंत्री पद की कुर्सी छोड़ने के बाद उन्होंने कभी पार्टी लीक से हटकर कोई बयान जारी नही किया। लेकिन एकाएक विधानसभा में बैकडोर भर्ती और यूकेएसएसएससी की परीक्षाओं में अनियमितताओं पर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुखरता से अपनी बात की और प्रदेश के युवाओं का हित सर्वोपरि रखा। त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान पार्टी को असहज करते रहे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी निष्पक्षता से जांच कराने और विधानसभा में बैकडोर भर्ती प्रकरण पर आक्रामक नजर आए। बस यही से सियासत का माहौल गरमाया हुआ है।