भाजपा सरकार में कब तक पिटेगा तहसील प्रशासन, जान ​जोखिम में डालकर आपदा में सेवा करेंगे पटवारी





नवीन चौहान
उत्तराखंड में तहसील प्रशासन तमाम मुसीबतों का सामना कर रहा है। सरकारी कोष में राजस्व जुटाने के लिए संघर्ष कर रहा है। तो आपदा के वक्त में अपनी जान जोखिम में डालकर जनता की सेवा कर रहा है। लेकिन सबसे बड़ी अहम बात यह कि भाजपा सरकार में लगातार तहसील प्रशासन के कर्मचारियों के साथ मारपीट, गाली गलौच और अभद्रता होती रहेगी। पूर्व में एक भाजपा नेता ने प्रशासनिक अधिका​री को फोन पर खूब गालिया सुनाई। जिसके बाद प्रशासनिक अधिकारी ने मामले को आलाधिकारियों के संज्ञान में लाया गया। जिसके बाद प्रशासन की टीम स्टोन क्रेशरों पर कहर बनकर टूटी।


लेकिन इस बार तो एक रजिस्ट्रार कानूनगों के सम्मान का प्रकरण है। आखिरकार प्रशासनिक अधिकारी अपने परिवार को भूलकर आपदा में जनता की सेवा करते है। जनता को आर्थिक सहयोग पहुंचाने के लिए दिन रात जुटते है। लेकिन भाजपा सरकार में जनता की सेवा करने वाले प्रशासनिक कर्मचारियों को गाली गलौच और उनके पिटाई तक खानी पड़ रही है।
भाजपा पार्षद सचिन चौधरी सत्ता के नशे में मदहोश हो गए। कानून से भी ऊपर खुद को समझने लगे। सामाजिक मान मर्यादा और बातचीत करने के संस्कार तक भूल गए। सचिन चौधरी एक जन प्रतिनिधि है। जनता ने अपने वार्ड से उनको अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजा है। ऐसे में उनको अपनी बात कहने का सलीका आना चाहिए। भाजपा एक संस्कारवान पार्टी होने का दंभ भरती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद प्रधान सेवक बनकर जनता को सर्वोपरि मानते है और प्रशासनिक टीम को अपना अभिन्न अंग समझते है। प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद मुख्य सेवक होने की बात करते है। तो भाजपा से जुड़े पार्षद महोदय एक सरकारी कर्मचारी से इस तरह का व्यवहार करके खुद की राजनीति चमकाना चाहते है।
यहां बात रजिस्ट्रार कानूनगो विजेंद्र कुमार के आत्म सम्मान की है। नौकरी आत्म सम्मान से बढ़कर नही होती। आखिरकार वह इंसान है। नौकरी करने की मजबूरी हो सकती है। लेकिन इस तरह बीच सड़क पर पिटाई खाने के बाद कोई व्यक्ति सरकारी नौकरी में खुद को किस तरह सुरक्षित रह पायेगा। शायद यही कारण है कि रजिस्ट्रार कानूनगो संघ को आगे आना पड़ा और कार्य बहिष्कार की चेतावनी देने को विवश होना पड़ा हो।
तहसील के कोरोना योद्धा कोरोना संक्रमण काल में अपना परिवार तक भूल चुके थे। संक्रमण के बीच रहकर जनता के जीवन को सुरक्षित रखने में जुझ रहे थे। वही तहसील कर्मचारी आज खुद को व्यथित महसूस कस रहे है। जिस प्रदेश की जनता खुद को सुरक्षित तो कर्मचारी असुरक्षित महसूस कर रहे है।



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