उत्तराखंड पुलिस के इस इंस्पेक्टर से बदमाशों को था खौफ, अब कैंसर को दे रहे मात, जानियें पूरी खबर




नवीन चौहान, हरिद्वार। खाकी के बहादुर और जांबाज इंस्पेक्टर और जिंदा दिल इंसान जवाहर सिंह राठौर पुलिस महकमे की शान है। कैंसर की गंभीर बीमारी से जूझते हुये भी पीड़ितों को न्याय दिलाने की पूरी तमन्ना रखते है। इनकी विवेचनाओं मे पीड़ित को पूरा इंसाफ मिलता और अपराधियों को जेल नसीब होती है। पुलिस महकमे की सबसे पेंचीदा कही जाने वाली विवेचनाओं का एसआईएस आॅफिस में बैठकर गहनता से परीक्षण कर रहे है। इनकी पारखी नजरों से कोई भी अपराधी कभी बच नहीं पाया। फिलहाल ये कैंसर की गंभीर बीमारी से जूझ रहे है। लेकिन मजाल की चेहरे पर कोई खौफ नजर आ जाये।
उत्तराखंड के जिला देहरादून के थाना कालसी गांव खाती निवासी जवाहर सिंह राठौर ने दिल में देश की सेवा का जज्बा लेकर खाकी वर्दी पहनी। साल 1981 में बतौर कांस्टेबल पीएसी में भर्ती हो गये। कई सालों तक जनता की सेवा की। जिसके बाद प्रोन्नती पाकर साल 1997 में दारोगा बने। उप निरीक्षक बनने के बाद वेस्ट यूपी के मेरठ थाना सिविल लार्इंस,मेडिकल कालेज, सूरजकुंड, दौराला कोतवाली मेरठ, लिसालीगेट के थानों में रहकर बदमाशों के दांत खट्टे किये। इस दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपराध चरम पर था। लेकिन जवाहर सिंह राठौर ने पूरी निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य का पालन किया। साल 2000 में राज्य गठन के साथ प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी की सुरक्षा में तैनात रहे। साल 2002 में हरिद्वार के लक्सर थाने में तैनाती मिली। लक्सर में उन दिनों अपहरणकर्ताओं का बोलवाला था। लेकिन जवाहर सिंह राठौर ने एक के बाद एक प्रमोद गैंग, जयपाल उर्फ झल्लू गैंग और मोमीन उर्फ वकीलों गैंग को नेस्तानाबूत किया। साल 2017 में जवाहर सिंह राठौर को एकबार प्रमोशन मिला और वह इंस्पेक्टर बन गये। इंस्पेक्टर बनने के बाद हरिद्वार के एसआईएस शाखा का प्रभारी बनाया गया। जहां पुलिस महकमे की सबसे ज्यादा पेंचीदा समझे जानी विवेचनाओं को सुलझाया जाता है। इन्ही जवाहर सिंह राठौर को साल 2014 में जब अलसर का इलाज कराने गये तो कैंसर की बीमारी का पता चला। कैंसर भी खतरनाक स्टेज पर पहुंच चुका था। जहां मौत से मुकाबला करने के अलावा के जवाहर सिंह राठौर के पास कोई रास्ता नहीं था। लेकिन उन्होंने अपनी जिंदादिली नहीं छोड़ी। शरीर की विपरीत स्थिति में भी चिकित्सकों को आप्रेशन करने को कहा। आप्रेशन सफल रहा तो कीमोथैरेपी का सिलसिला शुरू हो गया। कैंसर से उबरने के बाद एक बार फिर अपने कर्तव्य का पालन करने में जुट गये। कई संगीन मुकदमों को हल किया। लेकिन जवाहर सिंह राठौर को एक बार फिर कैंसर से मुकाबला करना पड़ रहा है। शरीर कमजोर हो रहा है लेकिन अपनी इच्छा शक्ति के बलबूते आज भी पुलिस महकमे के लिये एक मिशाल बने हुये है। आॅफिस में बैठकर पूरी गहनता से तफ्तीशों का निबटारा कर रहे है।

संगीन मुकदमों की विवेचनाओं में जवाहर को महारथ
हरिद्वार। जवाहर सिंह राठौर को विवेचनाओं में महारथ हासिल है। जिस तफ्तीश को करते उसमें अपराधियों को जेल होती है। जवाहर सिंह राठौर के तफ्तीशों के रिकार्ड की जानकारी जुटाई तो अधिकतम मुकदमों में अपराधियों को सजा मिली। जब इस संबंध में न्यूज 127 डॉट कॉम ने जवाहर सिंह राठौर से पूछा तो बताया कि विवेचक को सबसे पहले एफआईआर का पूरी गहनता से अध्ययन करना चाहिये। वादी से मुकदमे के संबंध में दिये गये तमाम साक्ष्यों को पढ़ना चाहिये। फिर देखना चाहिये कि केस में किन किन साक्ष्यों की जरुरत है। इस विभाग में उसके नियम होते है। उन नियमों की जानकारी लेनी चाहिये। उसके बाद तफ्तीश को आगे बढ़ाया जायेगा तो अपराधी को निश्चित तौर पर जेल होगी। यदि केस झूठा है तो पहली ही नजर में पकड़ आ जायेगा।

पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिये मंत्री और अफसरों से ठनी
हरिद्वार। मंत्री और अफसरों के दबाव में भी जवाहर सिंह राठौर ने कभी किसी निर्दोष को जेल नहीं भेजा। यही कारण रहा कि मंत्री और अफसरों से टकराव भी हुआ। जिसके चलते प्रमोशन की फाइले अटक गई। लेकिन अपने जमीर को नहीं बेचा। जो सच था उसी का साथ दिया। उनका मानना है कि पीड़ित पुलिस से इंसाफ की उम्मीद लेकर आता है। पुलिस का कर्तव्य है कि पीड़ित को इंसाफ दिलाकर रहे।



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