जिसने बच्चे का जीवन बचाया उसी पर लगा दिये संगीन आरोप, जानियें पूरी खबर




हरिद्वार। इंसानियत का धर्म निभाने वाले लोगों को हमेशा परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसी ही एक परेशानी का सामना हरिद्वार के एक निजी अस्पताल के चिकित्सकों को करना पड़ा। करीब एक सप्ताह तक नवजात के जीवन की रक्षा के लिये चिकित्सकों की टीम ने पूरी मेहनत की। जब चिकित्सालय ने बिल का भुगतान करने को कहा तो चिकित्सकों पर ही बच्चे को नहीं देने का आरोप लगाकर चिकित्सालय की शहर में फजीहत करा दी। नेता, पुलिस और मीडियाकर्मी तक अस्पताल पहुंच गये। जब सच्चाई का पता चला तो सब चुपचाप वहां से खिसक गये। चिकित्सकों ने दरियादिल दिखाते हुये मरीज का पूरा बिल माफ कर दिया। जिसके बाद मरीज के परिजनों ने घटना के लिये माफी मांगी।
रानीपुर मोड़ पर न्यू देवभूमि हॉस्पिटल है। हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ सुशील शर्मा ने बताया कि रानीपुर के टिबड़ी निवासी एक व्यक्ति की पत्नी की डिलीवरी 6 सितंबर को महिला चिकित्सालय में हुई। महिला ने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। लेकिन समय से पूर्व डिलीवरी होने के चलते दोनों बच्चों की हालत नाजुक हो गई। तथा महिला को अत्यधिक रक्त श्राव होने लगा। महिला अस्पताल के चिकित्सकों ने परिजनों को महिला को हायर सेंटर ले जाने की सलाह दी। लेकिन अस्पताल की एक आशा ने मरीज के परिजनों को कहा कि महिला की हालत नाजुक है। देहरादून पहुंचने की स्थिति में नहीं है। इसको नजदीक के अस्पताल में भर्ती करा दो। जिसके चलते परिजनों ने महिला को नाजुक हालत में 7 सितंबर को रानीपुर मोड स्थित देवभूमि अस्पताल में भर्ती करा दिया। अस्पताल के चिकित्सकों ने दो बच्चों को मशीन में रख दिया। जबकि महिला का इलाज शुरू कर दिया। 24 घंटों के भीतर महिला की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। जिसके बाद चिकित्सकों ने महिला को हायर सेंटर ले जाने की सलाह दी। परिजन दोनों बच्चों को अस्पताल छोड़कर महिला को लेकर जौलीग्रांट चले गये। जौलीग्रांट के चिकित्सकों ने भी महिला को प्राथमिक इलाज देने के बाद उसको चंडीगढ़ ले जाने की सलाह दी। परिजन महिला को लेकर पीजीआई चंडीगढ़ चले गये। जहां महिला की कई दिन बाद इलाज के दौरान मौत हो गई। इस दौरान बच्चों के पास परिवार का कोई सदस्य मौजूद नहीं रहा। चिकित्सक ही बच्चों का ध्यान रखते रहे। इन दोनों बच्चों में से एक बच्चे जिसका वजन बहुत कम था उसकी मौत हो गई। जबकि दूसरे बच्चे को बचाने के लिये चिकित्सकों की टीम ने पूरी मेहनत की। चिकित्सकों का प्रयास सफल रहा और बच्चे की हालत में सुधार हो गया। गुरुवार को बच्चे के परिजनों जब उसको डिस्चार्ज कराने आये तो उन्होंने अस्पताल प्रबंधन पर बच्चे को नहीं देने का आरोप लगा दिया। जिसके बाद तमाम नेता, मीडियाकर्मी और पुलिस बल अस्पताल पहुंच गये। पता चला कि मरीज के परिजनों ने बिल का कोई भुगतान नहीं किया है। परिजन बिल की राशि को देने से इंकार कर रहे है। इस स्थिति में पुलिस और नेता असमंजस में पड़ गये। पुलिस और मीडियाकर्मी की गुजारिश पर आखिरकार डॉ सुशील शर्मा ने मरीज का पूरा बिल माफ कर दिया और बच्चे को निशुल्क दवाई देकर विदा कर दिया।

सरकारी चिकित्सकों ने खड़े कर दिये हाथ
हरिद्वार। दोनों जुड़वां बच्चों का जन्म सरकारी अस्पताल में हुआ। पौने सात माह में जन्म लेने वाले एक बच्चे का वजन 900 ग्राम तथा दूसरे का वजन एक किलो 100 ग्राम निकला। सरकारी अस्पताल के चिकित्सकों के हाथ खड़े करने के बाद इन बच्चों को न्यू देवभूमि अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां चिकित्सकों ने 12-12 हजार के इंजेक्शन बच्चों को लगाये। तब जाकर बच्चों की हालत में सुधार होना शुरू हुआ। लेकिन चिकित्सकों की तमाम कोशिशों के बावजूद कम वजन वाले बच्चे को बचाया नहीं जा सका।



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