कृषि विवि की टीम कर रही लम्पी स्किन बीमारी के प्रति जागरूक, पशुओं की निशुल्क जांच




मेरठ।
पशुओं में बढती लम्पी स्किन बीमारी के प्रति किसान और पशुपालकों को जागरूक करने और पशुओं को उचित बांझपन उपचार प्रदान करने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौधोगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ के पशु चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम विभिन्न जिलों में जाकर निःशुल्क पशु चिकित्सा शिविर का आयोजन कर रही है।

इस कार्य के लिए अल्ट्रासाउंड एवं अन्य रक्त की जांच से युक्त अत्याधुनिक एम्बुलेंस इफको द्वारा प्रायोजित की गयी है। इस परियोजना के प्रभारी डॉ अमित वर्मा ने बताया कि टीम द्वारा मुज़फ्फरनगर, शामली, मेरठ में शिविर आयोजित किये गये जा रहे हैं और किसानों द्वारा लगातार अपने क्षेत्र में शिविर लगाने की माँग आ रही है। कैंप के दौरान संक्रमण से बचने के लिए साफ-सफाई, वाह्य परीजीवी नाशक का छिड़काव, फॉगिंग आदि करने की सलाह दी जा रही है।

उल्लेखनीय है कि लम्पी त्वचा रोग संक्रमण का मक्खियों और मच्छरों के कारण फैल रहा है, जिससे जानवरों को तेज बुखार के साथ शरीर की त्वचा पर गांठ बनने लगती है और इससे जानवर की मृत्यु भी हो सकती है। कृषि विवि के कुलपति डा आर के मित्तल ने बताया कि पशुपालन विभाग के सहयोग से इन शिविरों का आयोजन किया जा रहा है, जिससे पशुपालक लाभान्वित हो रहे है।

उन्होंनें बताया कि भविष्य में कृषि विज्ञान केन्द्रों के सहयोग से भी इन शिविरों का आयोजन की योजना है। इसी श्रृंखला में शनिवार को बिजनौर के नहटौर ब्लॉक में कृषि विवि तथा पशुपालन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से शनिवार को इफको प्रायोजित एक दिवसीय पशु चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। परियोजना के प्रभारी डॉ अमित वर्मा ने बताया कि शिविर में आसपास के ग्रामीणों ने अपने पशुओं की जाँच करवाई और कुल 100 से अधिक पशुओं का उपचार किया गया।

शिविर में डॉ अमित वर्मा, डॉ अरबिंद सिंह, डॉ अजित सिंह, डॉ अखिल पटेल, डॉ विकास जयसवाल ने पशुओं की जाँच की। पशुओं के स्वास्थ्य परीक्षण और उपचार के अतिरिक्त पशु पालकों को विटामिन और खनिज मिश्रण, कीड़ों की दवा, एंटीबायोटिक, दर्द निवारक, हॉर्माेन और घाव भरने वाले मलहम सहित कई आवश्यक बाँझपन की समस्या से सम्बंधित पशुचिकित्सा दवाएं वितरित की गईं। शिविर में आये पशुओं पर जूं एवं किलनी नाशक दवाओं का छिडकाव भी किया गया।

शिविर के आयोजन में मुख्य पशुचिकित्साधिकारी डॉ बिजेंद्र सिंह, डॉ अनुराग चौधरी तथा अन्य ग्रामीण पशुपालकों ने सक्रिय योगदान दिया।



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