नवीन चौहान.
कर्नाटक में जिस तरह से चुनाव के नतीजे आए है वह बेहद ही चौंकाने वाले हैं। इस बार वहां भाजपा की हार होगी और वह भी भारी अंतर से यह उम्मीद भाजपा पार्टी को कतई नहीं थी। हालांकि राजनीति के गलियारे में चर्चा यही थी कि इस बार भाजपा वहां चुनाव हारेगी। उसके पीछे पार्टी की अपनी अंदरूनी गुटबाजी, प्रदेश सरकार द्वारा जनता का विश्वास खो देना जहां बड़ी वजह माना जा रहा है वहीं यह भी कहा जा रहा है कि प्रदेश में भाजपा केवल केंद्र सरकार के काम और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बलबूते चुनाव जीतने की आस लगा बैठी थी।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि कर्नाटक चुनाव जीत कर जिस तरह से कांग्रेस में उत्साह का संचार हुआ वह कांग्रेस के लिए भी चुनौती है। कांग्रेस को इस उत्साह को बनाए रखने के लिए अब और अधिक जमीनी स्तर पर काम करना होगा। यदि इस जीत के बाद कांग्रेस के पदाधिकारी ये मान बैठे के अब उनकी जीत का सिलसिला शुरू हो गया है तो यह उनकी गलत फहमी होगी। विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में मतदाताओं का देखने का अलग नजरिया होता है।
वहीं दूसरी ओर कर्नाटक में भाजपा की यह हार उसे अब और अधिक मंथन की जरूरत होगी। पार्टी को उन कारणों पर विचार करना होगा जो उनकी हार के कारण बने। यही नहीं जिन राज्यों में भाजपा कही सरकार है वहां भी लोकसभा चुनाव में जीत के लिए जरूरी होगा कि एक बार फिर से रिव्यू कर लिया जाए कि रणनीति और नीति में कहां कमी दिख रही है। जनता जर्नादन होती है, इसलिए जनता की अनदेखी कर न तो कोई योजना बनायी जा सकती और न ही अधिक दिनों तक सत्ता में राज किया जा सकता है।
कर्नाटक चुनाव में जहां भाजपा को करारी हार मिली है वहीं यूपी में आज ही नगर निकाय के चुनाव परिणाम सामने आए हैं। जहां भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल कर यह साबित कर दिया है कि प्रदेश में भी भाजपा के प्रति जनता का विश्वास बना हुआ है। यहां लोगों ने केंद्र सरकार की नीतियों और प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के फैसलों का एक तरह से समर्थन कर भाजपा प्रत्याशियों को भारी बहुमत से जीत दिलायी है। यूपी के नगर निकाय चुनाव में अन्य दल 17 नगर निगमों में अपना एक भी मेयर नहीं जीता सका है।
यूपी में इस जीत से भाजपा अति उत्साहित दिखायी दे रही है, लेकिन यहां भी राजनीति के विशेषज्ञ यही कह रहे हैं कि जीत से खुश नहीं होना चाहिए, बल्कि अब लोकसभा चुनाव में जीत के लिए और अधिक मेहनत और लगन से कार्यकर्ताओं को जुट जाना चाहिए। जनता के बीच जाकर सरकार की नीतियों को बताना होगा। सरकार के विकास कार्यों को गिनाना होगा। जो जनप्रतिनिधि नगर निकाय चुनाव में पार्टी के जीते हैं उन्हें जनता के बीच में रहकर उनकी उम्मीदों पर खरा उतर कर दिखाना होगा। यदि वह ऐसा नहीं करते तो इसका विपरीत असर लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा।