निजी स्कूलों पर भारी गुजरा 2020, स्कूल की अर्थव्यवस्था पर संकट




नवीन चौहान
साल 2020 निजी स्कूलों पर भारी गुजरा। निजी स्कूलों की अर्थव्यवस्था दिन—प्रतिदिन बिगड़ती रही। अभिभावकों की बेरूखी स्कूल संचालकों को सालती रही। संचालक फीस के लिए अभिभावकों से निवेदन करते रहे। लेकिन अभिभावकों ने तो मानो स्कूल संचालकों की बातों को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया। हद तो तब हो गई जब सरकारी नौकरी और बड़े व्यापारियों ने भी अपने बच्चों की स्कूल फीस को जमा नहीं कराई। दिसंबर माह के अंतिम दिनों में भी निजी स्कूल फीस के लिए गुहार लगाते नजर आए। लेकिन मजाल कि अभिभावकों ने अपने बच्चों के स्कूलों की तरफ कोई सकारात्मक रूख अपनाया हो।
मार्च 2020 में कोरोना संक्रमण ने भारत में एंट्री की। जिसके बाद देश काल परिस्थिति सबकुछ बदल गया। लॉकडाउन और अनलॉक होने तक देश की अर्थव्यवस्था पर संकट गहरा गया। लेकिन हम बात करते है कोरोना संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले निजी स्कूलों की। निजी स्कूलों के मुख्य द्वार पर ताले लटक गए। अप्रैल 2020 से दिसंबर 2020 तक नौ महीने मक बच्चों ने अपने स्कूल के दर्शन तक नहीं किए। केंद्र व राज्य सरकार के निर्देशों के बाद निजी स्कूलों ने आन लाइन पढ़ाई के माध्यम से बच्चों को एक बार फिर किताबों से जोड़ने का प्रयास किया। निजी स्कूलों के अध्यापकों ने यू—टयूब व व्हाट़सएप के माध्यम से बच्चों को पठन पाठन सामग्री भेजी। यहां तक तो सब ठीक रहा।
अब बात करते है स्कूल फीस की। तो अभिभावकों ने अपने बच्चे की स्कूल फीस जमा ना करने की कसम ले ली। राज्य सरकार ने भी शिक्षण शुल्क लेने की अनुमति को दी लेकिन अभिभावकों की इच्छानुसार। बस यहीं बात अभिभावकों के दिल को छू गई और मन को भा गई। अभिभावकों ने इस निर्देश का अक्षरश: पालन किया और स्कूल संचालकों को राज्य सरकार के निर्देशों का हवाला दिया। निजी स्कूल संचालकों ने सिर पकड़ लिया लेकिन अभिभावक टस से मस नहीं हुए। कमोवेश सभी निजी स्कूलों की हालत एक जैसी ही है।

कोरोना से स्कूलों पर प्रभाव का सांकेतिक फोटो

कुछ स्कूलों ने स्टॉफ कम कर दिया और शिक्षकों के वेतन में कटौती कर दी। कुछ स्कूल अपने वजूद को जिंदा रखने के लिए संघर्ष कर रहे है। जबकि बड़े और नामी स्कूल अपने पुराने बजट से वेतन और रख रखाव करा रहे है। हालात उनकी भी खराब है। लेकिन बड़ा स्कूल होने के नाते अपना दर्द जाहिर नहीं कर सकते है।
लेकिन कुछ सम्मानित अभिभावकों ने अपने बच्चों के स्कूल को अपना मानते हुए नियमित फीस जमा कराकर अपने जिम्मेदार पिता होने का फर्ज पूरा किया। अपने बच्चों के स्कूल को अपना माना। लेकिन अधिकतम ने तो सिर्फ खुन्नस ही निकाली। स्कूलों ने जब फीस के लिए निवेदन किया तो सोशल मीडिया पर खूब धज्जियां उड़ाई।
नया साल 2021 प्रवेश करने को है। अभिभावक 2020 की विदाई का जश्न मनाने की तैयारी कर रहे है। लेकिन अपने बच्चों की स्कूल फीस जमा कराने को लेकर फिलहाल उनका कोई इरादा नही है। अगर अभिभावकों ने ऐसी ही सोच बनाकर रखी तो साल 2021 में हरिद्वार के कई स्कूल बंद हो चुके होंगे।

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