पैतृक गांव में सम्मान पाकर भावुक हो गए उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार




नवीन चौहान
उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार डीजीपी बनने के बाद रविवार को पहली बार अपने जन्मस्थान कुराना, पानीपत पहुंचे। गांव पहुंचने पर गांव के लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया। अपने स्वागत को देखकर डीजीपी अशोक कुमार थोड़ा भावुक भी हो गए उन्हें अपने बचपन के दिन याद आ गए। अपने गांव में स्वागत और लोगो से मिले प्यार और स्नेह को उन्होंने अपने फेसबुक वॉल पर शेयर किया। इस दौरान डीजीपी अशोक कुमार ने अपने मास्टर को शॉल ओढाकर सम्मानित किया। डीजीपी अशोक कुमार ने अपने पैतृक गांव जाने की खुशी को अपने फेसबुक दोस्तों के साथ साझा किया

डीजीपी अशोक कुमार की फेसबुक से साभार उनके द्वारा अपने गांव में हुए स्वागत को लेकर, उन्होंने लिखा कि गांव में लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया और मुझे पगड़ी पहनाई इससे खुद को बहुत गौरवान्वित महसूस किया। उनका प्यार ही है, जो वे लोग गांव से लगभग 3 किमी दूर ही अहर-कुराना चौक पर फूलों से सजी खुली जीप लेकर पहुँच गए। मेरे मना करने के बावजूद मुझे गाड़ी में बैठा लिया। कूहू और शाश्वत को यह सब बहुत ही अच्छा लग रहा था।
गांव का वह पैतृक घर, जहां पैदा हुआ, बड़ा हुआ उसके एक-एक कमरे में गया, तो सारी पुरानी यादें ताजा हो गयी। घर की छत पर गया जहां हम खुले में सोते थे, वहां से अलकनन्दा के साथ सूर्यास्त देखा। पितृस्थल पर भी पूजा की। घर अब काफी जर्जर हो गया है, उसे भी ठीक कराऊँगा। गांव की वो गालियां जहां से रोजाना गुजरते थे, वो ट्यूबवेल जहां पानी पीते थे वो सब एकाएक आंखों के सामने आ गया। मेरे स्वर्गीय पिता जी के दोस्त शेरसिंह भी मिले उनका भी सम्मान किया और आशीर्वाद लिया।

जिंदगी में आगे बढ़ाने के लिए शिक्षक पहली सीढ़ी होते हैं मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसे शिक्षक मिले जिन्होंने मुझे सही रास्ता दिखाकर मेरा मार्गदर्शन किया। अपने उस स्कूल जहां से मैने 5वीं से 10वीं तक की शिक्षा ग्रहण की थी वहां पहुंचकर सारी यादें ताजा हो गई …गेंदे के फूल..तफरी में जामुन के पेड़ो पर चढ़ कर जामुन तोड़ना और भी बहुत कुछ। अपने शिक्षक मास्टर ओमप्रकाश और मास्टर रामेश्वर जी से मिला और उन्हें शॉल भेंट कर उनका सम्मान किया। मास्टर ओमप्रकाश जी हमारे मैथ्स टीचर थे। उन्ही की वजह से बोर्ड में 100 परसेंट नम्बर आये थे मैथ्स में। मेरे कुछ क्लासफेलो सुल्तान, सेवा सिंह, सतबीर, इन्दर, सत्यवान सरपँच, रामफल भी मिले।
दोपहर का भोजन भी गाँव में ही ग्रहण किया। माता जी, अलकनंदा, कुहू और शाश्वत को भी गाँव का वह साधारण भोजन बहुत ही पसंद आया। गाँव के प्राचीन मंदिर में सपरिवार पहुँचकर पूजा अर्चना की और गाँव की प्रसिद्ध एवं प्राचीन पहचान धौला दरवाजा पहुंचकर एतिहासिक विरासत के रुप में तस्वीर भी ली। गाँव के दरवाजे को लोगों ने खूब सजाया था, जिसमें गाँव की प्राचीन संस्कृति से जुड़ी हुई पहचान भी शामिल है।



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