डबल इंजन की गाड़ी निजी स्कूलों पर जाकर रूकी, जानिए पूरी खबर




नवीन चौहान, 

हरिद्वार। डबल इंजन की गाड़ी निजी स्कूलों पर जाकर रूकी खड़ी है। उत्तराखण्ड सरकार ने अपनी एक साल की नाकामियों को छिपाने के लिये फीस कटौती और एनसीईआरटी के मुद्दो का राग अलाप दिया हैं। पूरे प्रदेश की जनता सिर्फ और सिर्फ निजी स्कूलों की फीस और सरकार की मुफ्त किताबों में उलझकर रह गई है। सत्ता की कुर्सी पर काबिज मंत्रियों के पास प्रदेश की दशा और दिशा को बेहतर करने का कोई विजन नहीं है। पूर्व की सरकारों की तरह ही त्रिवेंद्र सरकार भी केंद्र सरकार के भरोसे राज्य की गाड़ी को दौड़ा रही है। सरकार के जीरो टालरेंस के दावे भी हवा हवाई है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति में संकट के बादल छाये हुये है। प्रदेश में कर्ज का ग्राफ तेजी से ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा है। चार धाम यात्रा शुरू होने के साथ पर्यटन विभाग की पोल भी खुल गई है। आबकारी विभाग में पहले से भ्रष्टाचार होने के कई मामले सामने आ गये है। ऐसे में प्रदेश सरकार क्या जनता को एनसीईआरटी की किताबे के बल पर ही लोकसभा चुनाव जीतने का सपना देख रही है।
उत्तराखंड की भाजपा सरकार जितनी संजीदगी निजी स्कूलों पर शिकंजा कसने में लगा रही है उसका दस प्रतिशत भी एनर्जी राज्य की दशा को सुधारने में लगाती तो हालात कुछ बदले हुये नजर आते। जी हां करीब डेढ़ साल पहले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड में आकर प्रदेश की जनता से भाजपा सरकार बनाने की अपील की थी। उन्होंने भाजपा को जीताकर डबल इंजन लगाने की बात की। प्रदेश की जनता ने मोदी पर भरोसा करते हुये भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया। भाजपा की सरकार बनी तो प्रदेश में उम्मीद की किरण जगने लगी। जनता को लगा कि डबल इंजन की सरकार कुछ नया कारनामा कर दिखायेगी। लेकिन छह माह तक सरकार कोई चमत्कार नहीं कर पाई। जनता में आवाज उठने लगी कि सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत सीधे सरल है पर सरकार को नहीं चला पा रहे है। त्रिवेंद्र ने जीरो टालरेंस का दावा किया वो गुब्बारा भी फुस्स हो गया। जीरो टालरेंस की हकीकत देखनी है तो किसी भी सरकारी विभाग में कोई काम कराने के बाद आपको खुद अंदाजा लग जायेगा। इसके बाद सरकार के सबसे तेज और एक्टिव मंत्री अरविंद पांडेय आगे आ गये। उनके पास शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी थी। सो उन्होंने सरकारी स्कूलों को सुधारने के लिये कदम बढ़ा दिये। सरकारी स्कूलों में गुणा भाग सिखाने गये तो खुद ही फेल हो गये। बाकी रही सही कसर सरकारी शिक्षकों की नेतागिरी ने पूरी कर दी। नेताजी के सरकारी स्कूलों में मास्टरजी के ड्रेस कोड को लागू करने के फैसले को फेल कर दिया। अब नेताजी कहां हार मानने वाले थे। उन्होंने अपनी गाड़ी का गियर बदला तो निजी स्कूलों के गेट पर ले जाकर अपनी गाड़ी रोक दी। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने निजी स्कूलों पर लगाम लगाने का दावा करते हुये एनसीईआरटी की किताबे सख्ती से लगाने का फरमान सुना दिया। मरता क्या ना करता कि तर्ज पर निजी स्कूल भी मंत्री के आदेश की नाफरमानी नहीं कर सके। निजी स्कूलों ने सरकार की जिद्द के आगे घुटने टेक दिये। ऐसे में अब सवाल उठता है कि कोई अभिभावक अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में इसलिये भेजता है कि वहां का कुछ स्टैंडर्ड होता है। वहां कुछ खास बात होती है। स्कूल प्रबंधक की कुछ किताबे जो बच्चों के लिये अच्छी होती है। लेकिन अब एनसीईआरटी की किताबों के बाद तो निजी स्कूलों का कोई लेबल हीं नहीं रहा। लेकिन उत्तराखंड की सरकार तो किताबे लगाने के बाद खुद को ऐसे पेश कर रहे है जैसे महाभारत का युद्ध जीतकर आ रहे है। अरे भाई आप तो सरकार है। सरकार का आदेश कोई कैसे टाल सकता है। आपकी जीत तो तब होगी जब आप उत्तराखंड को कर्ज से उबार दे। राज्य में मिलावटी सामान बाजारों में बिकना बंद हो जाये। चारधाम यात्रा सस्ती दरों पर हो। उत्तराखंड में निजी होटल के कमरे के दरवाजे गरीबों के लिये भी खुल जाये। प्रदेश में मादक पदार्थो की तस्करी पूरी तरह से बंद हो जाये। नहीं तो आप जनता को निजी स्कूलों के मुद्दे पर उलझाकर रखिये। आप तो सरकार हो। आपकी चित्त भी अपनी और पट भी अपनी।



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