मित्र पुलिस: थाने से वाहन छोड़ने के लिए पीड़ित को घंटो इंतजार





विजय सक्सेना
मित्र पुलिस की ईमानदारी भी अजीब है। मित्रता, सेवा और सुरक्षा का संकल्प लेकर पुलिस पीड़ितों का शोषण कर रही है। थाने में पहुंचने वाले पीड़ितों से कुछ पाने की अपेक्षा करती है। ऐसे ही एक थाने की पुलिस ने एक वाहन को रिलीज करने के लिए पीड़ित को कई घंटों तक चक्कर लगाए। पीड़ित को कभी आधार कार्ड की फोटो कॉपी, कभी लाइसेंस, कभी रजिस्ट्रेशन तो कभी पहचान वालों के नाम पते पूछने के लिए बार—बार परेशान किया। पीड़ित को मानों कोई सजा मिली हो। पुलिस के व्यवहार से पीड़ित आहत है। लेकिन अपनी मजबूरी के चलते मुंह पर ताला जड़ा है। कमोवेश पुलिस थानों का यही हाल है।
पुलिस के कब्जे में कोई चीज चली जाए और बिना कुछ नजराना दिए आपको आसानी से आपको मिल जाए तो आप बहुत खुशनसीब है। क्योकि मित्र पुलिस की ईमानदारी आपको भारी पड़ सकती है। पुलिस अगर आपसे कुछ नही लेगी तो आपको अपने जीवन के महत्वपूर्ण वक्त के कई घंटे थाने में अंदर बाहर घूमने में गुजारने पड़ सकते है। थानेदार साहब के मूड को देखकर ही आप कुछ कहने की हिम्मत जुटा सकते है। वैसे तो पुलिस जनता की सेवा और सुरक्षा करने के लिए बनी है। लेकिन चोरी का मुकदमा दर्ज कराना हो तो आपके पसीने छूट जाते है। क्योकि मुकदमा दर्ज करने के बाद चोर को पकड़ने के लिए मेहनत जो करनी पड़ेगी। लेकिन अगर आपको चोरी गया हुआ सामान मिल जाए तो वापिस लेने के लिए आपको बहुत मेहनत करनी होगी। थानेदार साहब के मूड से लेकर पुलिसकर्मियों को खुश करना होगा। कुछ ऐसा ही हाल पुलिस का है। जनता के वक्त की कोई कीमत पुलिस की नजर में नही है।
कप्तान साहब अपराध समीक्षा बैठक में पीड़ितों को त्वरित न्याय देने की बात करते है। लेकिन पुलिस पर असर होता कहां है। पुलिस तो पुलिस है। अपने मनमर्जी की करती है। तभी तो लोग पुलिस थानों से दूर ही रहना पसंद करते है।



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