haridwar की अर्थव्यवस्था डगमगाई, व्यापारी वर्ग से लेकर तमाम मजदूरों की आंखे भर आई




नवीन चौहान
कोरोना संक्रमण काल में हरिद्वार की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से डगमगा गई है। व्यापारी वर्ग से लेकर मजदूर तबके की आंखों के आंसू छलकने लगे है। बैंक कर्ज और तमाम देनदारी पीछा नही छोड़ रही है। कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गए है। हरिद्वार की चार धाम यात्रा पर भी संकट के बादल छा गए है। जिसके चलते ट्रैक्सी चालकों व पर्यटन से जुड़े तमाम कारोबारियों के चेहरे लटक गए है। ​सिडकुल की कंपनियों पर ताला लटकने से निजी एजेंसी के माध्यम से कार्य करने वाले कर्मचारी और उनके परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच गये है। कुल मिलाकर देखा जाए जाए तो हरिद्वार का कारोबार पूरी तरह से ठप्प हो गया है। ऐसे में केंद्र सरकार व राज्य सरकार को व्यापारियों और गरीब, मध्यम वर्गीय लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए योजना बनानी होगी। ताकि इन परिवारों को राहत मिल सकें।
कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते पूरे देश में करीब एक माह से लॉक डाउन है। सभी व्यवसायिक गति​विधियां बंद पड़ी हुई है। सभी देशवासी अपने—अपने घरों में है। कोरोना के वायरस से देशवासियों को सुरक्षित बचाने के लिए केंद्र सरकार ने लॉ​क डाउन किया है और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपील है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस अपील का पूरे देश ने स्वागत किया और पूरजोर तरीके से समर्थन किया। लॉक डाउन पार्ट वन तक तो सबकुछ ठीक चलता रहा। लेकिन लॉक डाउन पार्ट 2 शुरू होते ही गरीब, मध्यमवर्गीय जनता की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई। अगर हरिद्वार की बात करें तो यहां पर काफी तादात में गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों की जनसंख्या है। जिनकी गुजर—बसर सामान्य काम काज करके ही चलती है। रेहड़ी,खोखे वाले दुकानदारों के अलावा ​दूसरे मध्यम वर्ग के दुकानदार है। इनके अतिरिक्त पर्यटन कारोबार से जुड़े वाहन चालक, मालिक व तमाम होटल, रेस्टोरेंट कर्मचारी भी है। जिसको घर चलाने के लिए पैंसों की दरकार है। ये सभी लोग गरीबों की श्रेणी में भी नही आते और संपन्न भी नही है। वही दूसरी ओर बैंकों से कर्ज लेकर कार्य करने वाले दुकानदार वर्ग है। जिनकी एकाएक चलती गाड़ी जाम हो गई। जो ना आगे बढ़ती है और ना पीछे खिसक रही है। इनको बैंक कर्ज और होल सेलर की देनदारी सता रही है। वही ठेके पर होटल चलाने वाले तमाम होटल संचालकों की रातों की नींद उड़ी हुई है। हरिद्वार के पर्यटन व्यवसायी गिरीश भाटिया ने बताया कि वाहनों की बैंक किस्त, आरटीओ आफिस का टैक्स, वाहनों का बीमा, चालकों और कर्मचारियों का वेतन देने के लिए पैंसे नही है। चार धाम यात्रा सीजन को लेकर ही कुछ खर्चा पानी निकलता था। लेकिन इस बार तो वह भी चलने की संभावना नही है। ऐसी स्थिति में कुछ समझ नही आ रहा है कि आगे क्या होने वाला है। किस प्रकार घर चलायेंगे और रोजगार को दोबारा से जोड़ पायेंगे। उन्होंने सरकार से मांग की है कि व्यापारियों के हितों को ध्यान में रखकर सरकार कोई रास्ता निकाले। अन्यथा भुखमरी के चलते हालत का अंदाजा लगाना संभव नही है। कमोवेश ये ही स्थिति सभी व्यापारी वर्ग की है। कोरोना से मानव जीवन को सुरक्षित रखने के लिए लॉक डाउन केंद्र सरकार का एक बेहतर कदम है। लेकिन लॉक डाउन की स्थिति में अपने देश की जनता को भुखमरी से बचाने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है। ताकि सभी लोग घरों में सुरक्षित रह पाए। अन्यथा कोरोना से तो जनता बच जायेगी लेकिन कर्ज और भुखमरी की टेंशन दूसरी बीमारियों की वजह जरूर बन जायेगी।



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