नवीन चौहान.
26 जनवरी 2022 भारत का 73वां गणतन्त्र दिवस डीएवी हरिद्वार में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया गया। प्रातःकालीन सभा में सर्वप्रथम ईश्वर आराधना से विद्यालय गतिविधियों का प्रारम्भ हुआ। गणतंत्र के इस शुभ अवसर पर विद्यालय में बच्चों के लिए विभिन्न गतिविधियों का आयोजन ऑनलाइन किया गया।
विद्यालय में कोविड प्रोटोकॉल के अंतर्गत विद्यार्थियों को नहीं बुलाया गया। किन्तु सभी स्टाफ मेंबर्स ने गणतंत्र दिवस हर्षोल्लास से मनाया। विद्यालय प्रधानाचार्य मनोज कुमार कपिल ने सभी अध्यापकों, शिक्षणेत्तर स्टाफ एवं अन्य कर्मचारियों की उपस्थिति में विद्यालय की प्राचीर पर तिरंगा फहराते हुए स्वयं को गौरवान्वित अनुभव किया।
ध्वजारोहण के पश्चात् विद्यालय की वाणिज्य विभाग की प्रमुख डॉ. मंजीत कौर ने अपने साथी शिक्षकों के साथ वाणिज्य सार संग्रह के 12वें संस्करण के विमोचन हेतु विद्यालय प्रमुख मनोज कुमार कपिल, पर्यवेक्षिका कुसुम बाला त्यागी एवं हेमलता पाण्डेय को आमंत्रित किया। 12 वर्ष पूर्व विद्यालय के पूर्व प्रधानाचार्य पी0सी0 पुरोहित जी के निर्देशन में 26 जनवरी 2011 को वाणिज्य सार संग्रह के प्रथम संस्करण का विमोचन किया गया था, उसी परम्परा का निर्वहन प्रतिवर्ष किया जाता है। वाणिज्य विद्यार्थी देश में होने वाली वाणिज्यिक गतिविधियों को पूरे वर्ष की मेहनत से इसे तैयार करते हैं तथा इसका संग्रहण अन्य विद्यार्थियों के प्रयोग हेतु विद्यालय लाइब्रेरी में किया जाता है।
उसके बाद विद्यालय प्रमुख मनोज कुमार कपिल जी ने सभी को गणतंत्र दिवस की बधाई दी । उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पर्वों पर देशप्रेम की अनूठी भावना हम सभी के मन में होती है। गणतंत्र का अर्थ समझाते हुए उन्होंने कहा कि देश में देश के लोगों के लिए, देश के लोगों द्वारा बनाई गई व्यवस्था हैं । 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ। संविधान सभा, जिसका उद्देश्य भारत के संविधान का मसौदा तैयार करना था, ने अपना पहला सत्र 9 दिसंबर, 1946 को आयोजित किया। अंतिम विधानसभा सत्र 26 नवंबर 1949 को समाप्त हुआ और फिर एक साल बाद संविधान को अपनाया गया। लेकिन इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
आज का यह दिन स्वाभाविक रूप से बहुत गर्व एवं उत्साहित होने का दिन है और साथ में उस स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को याद करने का भी दिन है, जिनके बलिदानों से आज हम एक स्वतंत्र वातावरण में रह पा रहे हैं। आप सभी को स्मरण होगा जो हमारे सेनानियों ने बलिदान दिए उनके कारण ही यह देश आजाद हो पाया। इसी कारण हम अपना संविधान बना पाए हैं, यदि हम आजाद न होते तो हमारा संविधान भी न होता। भारतीय संविधान हमारे देश का ग्रंथ है। जिस प्रकार हम सभी अपने-अपने घरों में स्थापित ग्रंथों श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, वेदों तथा अन्य ग्रंथों का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार हमें अपने देश के ग्रंथ – देश के संविधान का भी सम्मान करना चाहिए, उसमें उल्लिखित नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए। हम अपने बहुत सारे अधिकारों की बात करते हैं, हमारे संविधान ने केवल हमें अधिकार ही नहीं दिए हैं, बहुत सारे कर्तव्य भी दिए हैं। अपने देश की नियमावली के अनुसार ही हमें काम करना होगा। सभी भारतवासियों को अपना-अपना काम पूरी निष्ठा से करना होगा। यदि सभी अपना-अपना काम अच्छी प्रकार एवं कर्तव्यनिष्ठा से करें तो इसी में हमारी देशभक्ति प्रदर्शित होती है, उसके लिए हमें कहीं भी अपनी देशभक्ति को प्रकट करने की आवश्यकता नहीं । उन्होने बताया कि जब 1929-30 में जो लाहौर अधिवेशन हुआ था, उसमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने भारत को स्वतंत्र करने की आवाज़ उठाई थी। साइमन कमीशन को पूरी तरह से रिजैक्ट कर दिया गया, लाला लाजपत राय शहीद हुए, सरदार भगत सिंह एवं देश के कई प्यारों ने अपनी शहादत दी, जिनका इतिहास में शायद कहीं उल्लेख भी नहीं। एक 24 वर्ष का सेनानी जतिन दास जो लाहौर जेल में था, उन्होने जेल में रहते हुए 63 दिन तक भूख हड़ताल कर इस संग्राम में अपना योगदान दिया। 63 दिन बाद जेल में ही शहीद हो गया। पूर्ण स्वराज की मांग लाहौर अधिवेशन में 26 जनवरी को उठाई गई, जिस कारण 26 जनवरी को हम अपना संविधान मना रहे हैं। इन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को हम हृदय से श्रद्धांजलि देते हैं। हमारा देश के प्रति जज्बा, देश के लिए कुछ कर गुज़रने की चाहत, उसकी प्रगति एवं सुरक्षा के बारे में हमें सतत् प्रयासरत रहना चाहिए। बच्चों में देश प्रेम की भावना जगाना हमारा कर्तव्य है और यह तभी सम्भव है, जब हम सभी अपना-अपना कार्य पूरी ईमानदारी से करें।
उन्होंने आगे कहा-
ग्राम, शहर या कुछ लोगों का नाम नहीं होता है देश
सड़कों, संसदों या आयोगों नाम नहीं होता है देश
देश नहीं होता है केवल सीमाओं से घिरा मकान
देश नहीं होता है सजी हुई ऊँची दुकान
देश क्या होता है-
देश होता है वो जहां सज्जन सीना ताने चलते, वही हुआ करता है देश
हर दिल में अरमान मचलते वही हुआ करता है देश
और यह संविधान हमें देता है, ताकत, मजबूती। उन्होने कहा कि संविधान की नियमावली का सारांश है अपने कार्यों को पूर्ण ईमानदारी से करना।
जो सीने पर गोली खाने को आगे बढ जाते थे, भारत माँ की जय कह कर फांसी पर चढ़ जाते थे
जिन बेटों ने धरती माता पर कुर्बानी दे डाली, आजादी के हवन-कुंड के लिए जवानी दे डाली
उन्होने हरिओम पंवार की उपरोक्त पंक्तियों द्वारा अपनी वाणी को विराम दिया।
मंच संचालिका डॉ0 अनीता स्नातिका ने कहा कि जिस प्रकार स्थूल शरीर में सूक्ष्म शरीर होता है, उसी प्रकार हमारे राष्ट्रीय पर्व हमारे भारत में समाए हैं। अंत में डॉ0 मंजीत कौर ने सभी उपस्थित जनों का हार्दिक धन्यवाद दिया।