नवीन चौहान
उत्तराखंड में जल्द ही बड़ा फेरबदल होगा। मदन या निशंक में से कोई एक मुख्यमंत्री बनेगा। सुरेश भट्ट और धन सिंह रावत के नाम की भी चर्चा चल रही है। परिवेक्षक बस कुछ दिन का वक्त त्रिवेंद्र सिंह रावत को देकर गए है। कुछ ऐसे मुंगेरी लाल के हसीन सपने रोज भाजपाईयों को नींद में दिखाई पड़ते है। विगत चार सालों की त्रिवेंद्र सरकार में पांच बार ऐसे हसीन सपने नेता समर्थक भाजपाईयों को नींद में आ चुके है। अपने नेता को मुख्यमंत्री बनने का सपना उनके समर्थकों को आता रहता है। लेकिन जब आंख खुलती तो सपना टूट जाता है। वैसे बताते चले कि सपने कभी सच नही होते है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पारदर्शी सरकार की कार्यशैली की चर्चा दिल्ली तक है।
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री पद की कमान डोईवाला विधायक त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी गई। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने के बाद जीरो टालरेंस की मुहिम और पारदर्शी सरकार का संदेश जारी किया। उन्होंने इस मुहिम को परवान चढ़ाने के लिए ईमानदार जिलाधिकारियों को जनपदों में भेजा गया। प्रदेश की कानून व्यवस्था को बेहतर बनाए रखने के लिए काबिल पुलिस अफसरों को तैनाती दी गई। मुख्यमंत्री ने जिलाधिकारियों और एसएसपी की नियुक्ति में सिफारिशों को दरकिनार करते हुए उनकी योग्यता और कर्तव्यनिष्ठा को प्राथमिकता दी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का यह निर्णय प्रदेशहित में रहा और जनता में सकारात्मक भाजपा के प्रति संदेश गया। गरीब असहाय और पीड़ितों की जनपदों में सुनवाई होना संभव हो पाया। ईमानदार जिलाधिकारी जनता की सेवा में जुटे और केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को धरातल पर उतराना संभव हो पाया। इन चार सालों में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नही लगा। मुख्यमंत्री ने भी विंदास होकर जनता की समस्याओं का निस्तारण किया। प्रदेश की अर्थव्यवस्था के अनुरूप विकास कार्यो को मूर्तरूप दिया। प्रदेश में ट्रांसफर पोस्टिंग की दलाली बंद कराई और अफसरों और अधिकारियों की काबलियत के आधार पर जिम्मेदारी दी गई। कोरोना संक्रमण काल की बात करें तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यहां भी जनता की सेवा में कोई कोर कसर बाकी नही छोड़ी। उत्तराखंड की डूबती अर्थव्यवस्था को संभालने का पूरा प्रयास किया। राजस्व की बढोत्तरी करने की दिशा में कार्य किया।
लेकिन आज हम बात करते है मुंगेरी लाल के उस हसीन सपने की जो भाजपाईयों को नींद मे आते है। आखिरकार भाजपा कार्यकर्ता ही मुख्यमंत्री से संतुष्ट नही है। या फिर विधायकों की इच्छाओं की पूर्ति पर मुख्यमंत्री खरे नही उतरे। मुख्यमंत्री की मदन कौशिक से नजदीकिया है तो मदन के समर्थक को सपने क्यो आते है। तमाम सवाल है। गैरसेण को नई कमिश्नरी बनाया गया तो वहां के विधायक क्यो नाराज हो गए। हरिद्वार के कुछ विधायकों को मुख्यमंत्री का चेहरा क्यो पसंद नही आ रहा। विधायकों व उनके समर्थकों को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का चेहरा पसंद नही है। या फिर विधायकों के दिल में मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा हिलौरे मार रही है। सवाल उत्तराखंड के विकास है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जनता के हितों के लिए अपने ही विधायकों से नाराजगी मोल ले सकते है। वो उत्तराखंड प्रदेश के लिए कभी खराब हो ही नही सकते। उत्तराखंड की भौगोलिग परिस्थिति और अर्थव्यवस्था को देखते हुए बात कम और काम ज्यादा करने वाले त्रिवेंद्र की ही जरूरत है। फिलहाल तो भाजपाईयों को सपने देखना बंद करके त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार के चार साल पूरे होने के जश्न में खो जाना बेहतर है। वैसे निशंक जी केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। डॉ निशंक पीएम मोदी और अमित शाह की पंसद है। वही मदन तो खुद सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के सबसे करीबी होने का खामियाजा भुगत रहे है। कई विधायक तो इसी बात से सीएम त्रिवेंद्र से नाराज चल रहे है। मुख्यमंत्री मदन को ही पूछते है हमको नही। आखिरकार अपने घर की नाराजगी घर में सुलझाओं जनता में नही।