उत्तराखंड के निजी स्कूल होंगे आलीशान होटल में तब्दील, जानिए पूरी खबर




नवीन चौहान,   

हरिद्वार। उत्तराखंड सरकार के निजी स्कूलों पर शिकंजा कसने के बाद हरिद्वार के कई स्कूल बंदी के कगार पर पहुंच गये है। निजी स्कूलों के लिये बनाये जा रहे सरकार के सख्त नियम और फीस स्ट्रक्चर स्कूल संचालको के गले की फांस बन गये है। इस फांस को निकालने के लिये निजी स्कूल संचालकों ने करोड़ों की भूमि पर बनाये स्कूल को आलीशान होटल में तब्दील करने का मन बना लिया है। इसके अलावा निजी स्कूलों की फीस को लूट शब्द का प्रयोग करने के भी स्कूल संचालक खासे आहत है। सूत्रों से जानकारी मिली है कि हरिद्वार के कई स्कूलों ने अगले सत्र से निजी स्कूलों को बंद कर होटल में तब्दील करने की तैयारी कर ली है।
गत वर्ष से उत्तराखंड सरकार ने निजी स्कूलों पर नकेल कसनी शुरू कर दी। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने निजी स्कूलों में कैपिटेशन फीस को पूरी तरह से बंद करा दिया। उसके बाद निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तको को लागू करा दिया। इन नियमों को निजी स्कूलों ने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया। लेकिन इन नियमों के प्रदेश में लागू होने के बाद उत्तराखंड सरकार ने निजी स्कूलों की फीस बढ़ोत्तरी के लिये कड़ा बिल बनाया है। जिसको जल्द ही केबिनेट में पेश किया जायेगा। इस बिल में निजी स्कूल पूरी तरह से सरकार के हाथों की कठपुतली बन जायेंगे। वही दूसरी ओर निजी स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराने वाले अभिभावक स्कूलों के खिलाफ लूट शब्द का प्रयोग करते है। सरकार की सख्ती और लूट शब्द दोनों ही बात निजी स्कूल संचालकों को खासी आहत करती है। इसी के चलते निजी स्कूल संचालकों ने अपने को शिक्षा के क्षेत्र से हटाकर पर्यटन के क्षेत्र में कदम बढ़ाने का फैसला कर लिया है। सूत्रों से जानकारी मिली है कि निजी स्कूल संचालक अपने स्कूल को बंद कर होटल में तब्दील करने की तैयारी कर रहे है।
शिक्षा के कारोबार में हुई खूब धन उगाही
आपकी जानकारी के लिये बतादे कि शिक्षा का क्षेत्र और कारोबार बन चुका है। इस कारोबार में फायदा ही फायदा है। जिसके चलते गत एक दशक से निजी स्कूलों की बाढ़ सी आ गई। निजी स्कूलों ने भी अभिभावकों से धन वसूलने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी। स्कूल ड्रेस, किताबें, पिकनिक, स्कूल डायरी, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन से लेकर तमाम धन वसूली के तरीके निकाले। स्कूलों की इन हरकतों से अभिभावक तंग आ गये। अभिभावकों ने आवाज बुलंद कर दी तो सरकार की नींद टूटी। जिसके बाद सरकार ने निजी स्कूलों की तरह ध्यान केंद्रित किया।
तीन श्रेणियों के स्कूल में एक समान नियम, सस्पेंस
निजी स्कूलों में कई केटेगिरी है। कुछ स्कूल एकल स्वामित्व के है तो कुछ संस्थाओं और ट्रस्टों द्वारा संचालित किये जाते है। एकल स्वामित्व के निजी स्कूलों में तो मालिक ही फीस और तमाम निर्णय करता है। जबकि संस्थाओं के स्कूलों में प्रबंध कार्यकारिणी ही पूरे निर्णय करती है। इसके अलावा अल्पसंख्यकों के स्कूलों में कई प्रकार की छूट दी गई है। इन स्कूलों में सरकार के नियम भी लागू नहीं होते है। यही कारण है कि इन स्कूलों में आरटीई के एडमिशन तक नहीं लिये जाते है। अब तीन श्रेणियों के स्कूलों में एक समान नियम किस प्रकार सरकार लागू करेगी ये एक बड़ा सवाल है। आखिरकार इन स्कूलों में कार्य करने वाले हजारों शिक्षक, कर्मचारियों की रोजी रोटी का सवाल जो है।



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