नवीन चौहान
कोरोना संक्रमण काल की विषम परिस्थितियों में जब भारत सरकार को अपने देश की जनता से दान की जरूरत पड़ी तो हरिद्वार के बड़े नाम वाले दानवीर कानों में रूई लगाकर सो गए। खुद को बड़ा समाजसेवी कहलाकर गौरवांवित महसूस करने वाले इन बड़े नाम वाले दानवीरों की सूची में गायब मिले। जबकि हरिद्वार के एक बुजुर्ग ने तो अपनी पेंशन से दान की राशि काटने के लिए जिलाधिकारी को प्रार्थना पत्र दिया। इस बुजुर्ग की इच्छा शक्ति की जितनी सराहना की जाए वो कम हैं।
मार्च 2020 में कोरोना संक्रमण काल भारत की अर्थव्यवस्था की अग्निपरीक्षा के लिए बड़ी चुनौती रहा। कोरोना वायरस के आने के बाद लॉकडाउन के चलते देश जहां का तहां थम गया। जनता घरों में कैद होकर रह गई। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत के सभी नागरिकों को भोजन, राशन, दवाईयां और उनको सुरक्षित रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी थी। लेकिन इस दौरान गरीब वर्ग की जनता की जरूरतों को पूरा करने की सबसे बड़ी चुनौती थी। पीएम नरेंद्र मोदी ने पीएम केयर फंड के माध्यम से देशवासियों से दान देने की मार्मिक अपील की थी। पीएम मोदी की इस अपील पर देश की जनता ने दिल खोलकर दान किया। हरिद्वार की बात करें तो यहां पर संत, महंत, आश्रम, अखाड़ों, इंडस्ट्री और व्यक्तिगत दान जमा किया गया। लेकिन सबसे अधिक चौंकाने वाली बात ये रही कि बड़े नाम वाले समाजसेवी दान देने में पीछे रहे। इन समाजसेवियों ने दान देने में कोई रूचि नहीं दिखाई। हालांकि दान देना व्यक्ति की स्वयं की इच्छा पर निर्भर करता है। पुरानी कहावत भी है कि दान देने से खजाना कम नही होता अपितु उसमे बृद्धि होती है। जबकि विपरीत परिस्थिति में अपने देश की अर्थव्यवस्था में सहयोग करने की नैतिक जिम्मेदारी समस्त भारतवासी की है। तो फिर हरिद्वार के समाजसेवियों का दान देने में रूचि ना दिखाना एक बड़ा सवाल है। आखिर नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली कहावत चरितार्थ हो गई। खनन कारोबारी, शराब कारोबारी, कॉलेज प्रबंधन, होटल कारोबारी तमाम बड़े कारोबारियों ने भी दान देने में कोई रूचि नही दिखाई। आखिरकार ये दान देश की जनता की सेवा के लिए था। तो फिर कारोबारियों की इच्छा शक्ति कमजोर कैसे पड़ गई। जबकि कुछ समाजसेवियों ने जमीनी स्तर पर जनता की खूब सेवा की। गरीबों को भोजन, राशन, दवाईयां पहुंचाई। दिन रात गरीबों की सेवा की और यात्रियों की मदद की।