मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की ईमानदारी विधायकों को पड़ी भारी, अब नाराजगी दूर





नवीन चौहान
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ईमानदारी भाजपा के तमाम विधायकों को भारी पड़ी। विधायकों के मुख्यमंत्री बदलने के तमाम दांव उलटे पड़े। मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने की तमाम खबरों पर देर शाम तक विराम लग गया। हालांकि भाजपा विधायकों को संतुष्ट करने का फार्मूला ​जरूर निकाला गया है। देहरादून में भाजपा विधानमंडल की बैठक के बाद संभावित नामों पर सभी विधायकों से विचार विर्मश के बाद तीन नए मंत्री और एक राज्यमंत्री पद की घोषणा की जा सकती है। इस हाईप्रोफाइल एपिसोड के दौरान हरिद्वार के तमाम भाजपा विधायक अपने—अपने क्षेत्रों में जनता के बीच सक्रिय दिखे। हालांकि एक विधायक जरूर दिल्ली की एक्सरसाइज में जोर आजमाइश में शामिल रहे।
बताते चले कि उत्तराखंड के भाजपा विधायकों की मुख्यमंत्री से नाराजगी खुलकर जगजाहिर हो चुकी है। कुछ विधायकों को मुख्यमंत्री का चेहरा पंसद नही है। तो कुछ विधायको को मुख्यमंत्री के कार्यो पर आपत्ति है। लेकिन इन बातों से अलग हटकर बात करें तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का चार साल का कार्यकाल बेदाग रहा। मुख्यमंत्री के तमाम निर्णय जनहित के रहे। उन्होंने तमाम घोषणाओं को धरातल पर चरितार्थ​ किया। हा कुछ विधायकों के ग​लत कार्यो को परवान नही चढ़ने दिया। बस यही से मुख्यमंत्री बदलने को लेकर मीडिया में हवा दी जाती रही। त्रिवेंद्र सरकार के चार सालों में पांच बार सीएम का चेहरा बदलने की चर्चा ने जोर जरूर पकड़ा। गुब्बारा फूला भी लेकिन कुछ देर बाद गुब्बारे की हवा निकल गई। लेकिन इस बार तो गुब्बारा कुछ ज्यादा ही फूल गया। जब मुख्यमंत्री को दिल्ली बुलाया गया जो संभावना ने जोर पकड़ लिया। सभी अनुभवी विद्धानों ने अपने ज्ञान के मुताबिक मुख्यमंत्री के नामों की घोषणा तक कर दी। जब देहरादून में मुख्यमंत्री आवास में बैठक बुलाए जाने की जानकारी मिली तो सभी को मामला एक बार ठंडा पड़ता दिखा।
सीएम से नाराजगी की वजह
— उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बदलने का विधायकों के पास कोई ठोस कारण नही है।
—गैरसेण कमिश्नरी को लेकर विधायक नाराज
—मंत्रीमंडल का विस्तार करने को लेकर नाराजगी
—विधायकों के स्वार्थ की पूर्ति नही हो पाना
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के अच्छे कार्य
—अधिकारियों के टांसवर पोस्टिंग की दलाली बंद
—जनहित के कार्यो को प्राथमिकता देना
—ईमानदार जिलाधिकारी और एसएसपी की नियुक्ति करना
—खनन और शराब माफिया लाबी में हड़कंप
—पारदर्शिता से कार्य करने की पॉलिसी को लागू करना
वैसे बताते चले कि चेहरा बदलने से उत्तराखंड का चंहुमखी विकास नही हो सकता। उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था केंद्र सरकार पर निर्भर करती है। राज्य में धड़ाधड़ घोषणा नही की जा सकती है। ऐसे में बजट के अनुरूप ही विकास कार्य कराए जा सकते है। अगर सीएम का चेहरा बदला जाए तो क्या सभी विधायक संतुष्ट हो जायेगे। विधायकों की नाराजगी तो तभी भी रहेगी। इसके अलावा जनता के बीच में भाजपा की डबल इंजन सरकार का एक गलत संदेश जायेगा।



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