समय के साथ कौन सी परम्परा तोड़ रही है दम, जानिए पूरी खबर




नवीन चौहान
हरिद्वार। एक समय था जब किसी भी पर्व के आने पर उसकी कई दिनों व महिनों पूर्व शुरूआत हो जाती थी। आज समय के साथ-साथ परम्पराओं का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। जिस तेजी से परम्पराएं बदलती जा रही है उसको देखते हुए परम्पराओं के विलुप्त होने का खतरा भी गहराने लगा है।
दीपावली को या देवोत्थान एकादशी या फिर कोई अन्य पर्व इनके आने से पूर्व त्यौहारों की तैयारियां शुरू हो जाती थी। अब समय के बदलाव के साथ-साथ परम्पराओं का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। दीपावली से पूर्व घरों को सजाया जाता था। रंगाई-पुताई व घर की सफाई के साथ जो बड़ा काम होता था वह था घरों में एपन लगाना। देवोत्थान एकादशी पर भी एपन लगाया जाता था। क्षेत्र व परम्पराओं के हिसाब से इका डिजायन बनाया जाता था। आज एपन लगाने की कला समाप्त होती जा रही है। इसके स्थान पर रंगोली अपना दायरा फैलाती जा रही है। एपन गेरू के आधार पर चावलों को पीसकर उसके घोल से बनाया जाता था। तरह-तरह की लोक कलाओं को एपन के माध्यम से चित्रित किया जाता था। उत्तराखण्ड के कुमांऊ व राजस्थान में आज भी यह परम्परा काफी प्रंचलित है, किन्तु शहरी क्षेत्रों में इसका स्वरूप बदलता जा रहा है। आज गेरू व चावलों के आटै के घोल से एपन बनाने की बजाय बाजारों में कागजों पर बने बनाए एपन का प्रचलन अधिक हो गया है। इसमें बनाने की न तो मेहनत होती है और न ही समय लगता है। बस बाजार से लाए और दीवारों व फर्श पर चिपका दिया। किन्तु जो कला हाथ से एपन बनाने की है उसकी बात ही कुछ और होती है। उसके कला के साथ परम्परा व स्थान की झलक का भी समावेश होता है। जिस प्रकार से महिलाओं की रूचि एपन को लेकर समाप्ति होती जा रही है और लोग इस कला के सिखने से बचने लगे हैं उसको देखते हुए यह कला जो की हमारी पुरानी परम्परा भी है शीघ्र ही दम तोड़ देगी। लोगों को इसे बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *