नवीन चौहान
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का आपदा प्रबंधन विभाग खुद आपदाग्रस्त है। इस विभाग में कोई स्थायी कर्मचारी नही है। कई सालों से संविदा और उपनल के जरिए कार्य कर रहे लेकिन इन कर्मचारियों की सुध सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी नही ली है। जिसके कारण इन तमाम कर्मचारियों का मनोबल पूरी तरह से टूट चुका है। मनोबल टूटने के बाबजूद भी आपदा प्रबंधन विभाग के समस्त कर्मचारी 24 घंटे प्रदेशवासियों को आपदा की स्थिति में राहत पहुंचाने के लिए कार्य कर रहे है। ऐसे में खुद ही अंदाजा लगा सकते है कि इस विभाग की स्थिति की हालत कैसी होगी। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत आपदा प्रबंधन विभाग की नियमावली तक लागू नही कर पाए है। जबकि विभाग की स्थिति ये है कि साल 2009 से 14 पद नियमित करने के लिए स्वीकृत है। लेकिन नियमावली के अभाव में इन पदों पर कोई भर्ती नही की जा सकती है।
उत्तराखंड प्रदेश आपदा के दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील है। इस प्रदेश में पहाड़ी राज्यों में अक्सर आपदा आती रहती है। वही तराई के इलाके हरिद्वार भी आपदा से अछूता नही है। बरसात के मौसम में पहाड़ और तराई के इलाकों में बाढ़ के हालात बने रहते है। उत्तराखंड में साल 2013 की भीषण प्राकृतिक आपदा को शायद ही कोई भूला है। इस प्राकृतिक आपदा में उत्तराखंड में त्राहिमाम मचा था। सैंकड़ों लोगों की जान चली गई थी। इस आपदा के बाद से आप्रदा प्रबंधन विभाग की अहम भूमिका सामने आई। लेकिन राजनैतिक आपदाओं से जूझते इस प्रदेश में आपदा प्रबंधन विभाग की सुध लेने वाली कोई सरकार नही रही। साल 2013 की प्राकृतिक आपदा के दौरान कांग्रेस सरकार ने इस विभाग के लिए कोई ठोस पहल नही की। वर्तमान की त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने भी आंखों पर पटटी बांध ली है। ऐसे में सबसे विचारणीय बात ये है कि आपदा की स्थिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने वाले आपदा प्रबंधन खुद दयनीय दौर से गुजर रहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपने इस विभाग की गंभीरता को देखते हुए आपदा प्रबंधन विभाग को चुस्त दुरस्त बनाने की जरूरत है। साथ ही नियमावली बनाकर अस्थायी कर्मचारियों की स्थायी नियुक्ति कर इस विभाग के ढांचे को मजबूत करें। ताकि प्रदेश में आपदा प्रबंधन विभाग महती भूमिका अदा कर सके।