नवीन चौहान
हरिद्वार नगर निगम उत्तराखंड सरकार और शासन के आदेशों को ठेंगा दिखा रहा है। नगर निगम जहां शासन के आदेशों की अवहेलना करता दिखाई पड़ रहा है वहीं, उत्तराखंड सरकार के लोक सूचना आयोग की आंखों में धूल झोंकने का कार्य भी कर रहा है। हरिद्वार नगर निगम का यह हाल तो तब है जबकि उत्तराखंड सरकार के मुखिया युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार सरकारी विभागों में पारदर्शिता, शुचिता की दुहाई दे रहे है। जनता की समस्याओं को संजीदगी से दूर करने और विभागों के भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार करने की बात करते है।
लाखों की कीमत के कंप्यूटर गायब
जी हां हम यहां बात कर रहे हैं नगर निगम के कंप्यूटर घोटाले की। नगर निगम के लाखों की कीमत के कंप्यूटर गायब है। आरटीआई एक्टिविस्ट रमेश चंद्र शर्मा ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत नगर निगम से कंप्यूटर सामग्री की खरीद फरोख्त की जानकारी हासिल की तो नगर निगम के इस घपले की परत खुली।
आरटीआई से मामला आया सामने
हरिद्वार के जागरूक नागरिक रमेश चंद्र शर्मा ने हरिद्वार नगर निगम से कंप्यूटर क्रय की जानकारी हासिल की। लेकिन उनको निगम की ओर से गोलमोल जबाब दिया गया। जिसके बाद रमेश चंद्र शर्मा ने लोक सूचना आयोग में अपील की। सूचना आयोग के आदेश पर 14 जुलाई 2017 को तत्कालीन नगर मजिस्ट्रेट जय भारत सिंह ने नगर निगम के कंप्यूटर के संबंध में जांच की।
सिटी मजिस्ट्रेट की जांच में गायब मिले कंप्यूटर
जय भारत सिंह ने जिलाधिकारी हरिद्वार को प्रेषित रिपोर्ट में बताया कि आरटीडीए द्वारा दिए गए 41 कंप्यूटरों में अधिकांश गायब है। इसी के साथ तत्कालीन स्टोर कीपर से कंप्यूटरों की वसूली करने की संस्तुति की। इसी के साथ आयोग ने 12 जनवरी 2018 को एक अन्य आदेश में नगर मजिस्ट्रेट की जांच आख्या पर शेष गायब कंप्यूटरों की जांच हेतु 8 फरवरी 2018 को जिलाधिकारी ने नगर मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी गठित की गई। जिसमें सहायक नगर आयुक्त, जिला सूचना विज्ञान केंद्र अधिकारी को जांच करने की जिम्मेदारी दी गई। वहीं दूसरी ओर 18 अप्रैल 2018 को तत्कालीन नगर मजिस्ट्रेट मनीष सिंह ने विस्तृत जांच रिपोर्ट में 22 सीपीयू, 11 मानीटर, 31 यूपीएस और 41 मॉडम के गायब होने की पुष्टि करते हुए इसकी तय कीमत स्टोर कीपर के रूप में कार्यरत कर्मचारियों के समान अनुपात में वसूली करने की संस्तुति की गई।
कर्मचारियों से वसूली गई घोटाले की रकम में भी खेल
नगर निगम ने इस मामले का पटाक्षेप करने के लिए अपीलार्थी रमेश चंद्र शर्मा को बताया कि जिलाधिकारी के 16 सितंबर 2018 के आदेशों के क्रम में तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट के अनुसार वसूली की रकम 17 हजार 430 रूपये 96 पैंसे नगर निगम के अधिष्ठान में कार्यरत तीन लिपिकों व नवंबर 2018 में सेवानिवृत्त एक अन्य कार्मिक से वसूली कर ली गई है।
गायब हुए 21 कंप्यूटर रकम निर्धारण 11 का
नगर निगम की धींगा मस्ती यहां तक नही रूकी। कंप्यूटर की रकम वसूली की गणना में भी घोर लापरवाही देखने को मिली। रिपोर्ट के मुताबिक 21 सीपीयू एवं 11 मानीटर के गायब होने की एवज में मात्र 11 सीपीयू और 11 मानीटर की मूल्य निर्धारण किया गया। अपीलीर्थी रमेश चंद्र शर्मा की इस शिकायत पर आयोग ने नगर निगम को इस त्रुटि को सुधार करने के लिए निर्देशित किया।
आदेश के बाद भी दर्ज नहीं हुआ मुकदमा
वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड शासन ने के संयुक्त सचिव ने 24 दिसंबर 2018 ने कंप्यूटर घोटाले के आरोपियों के मुकदमा दर्ज कराने के साथ विभागीय कार्यवाही एवं वसूली करने के आदेश दिए। हद तो तब हो गई कि शासन के आदेश का यह पत्र धूल फांकता रहा। लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। अपीलार्थी ने शासन के मुकदमा दर्ज करने के आदेश की सूचना मांगी तो कोई सकारात्मक जबाब नहीं मिला। जिसके बाद अपीलार्थी ने लोक सूचना आयोग से अपील की और घोटाले के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाही की मांग की।
उत्तराखंड लोक सूचना आयोग पहुंचा मामला
फिलहाल पूरा प्रकरण उत्तराखंड लोक सूचना आयोग में है। नगर निगम के घोटाले के आरोपी मस्त है। अपीलार्थी आयोग के चक्कर लगा-लगाकर त्रस्त है। लेकिन सरकार के नुमांइदे अपनी कार्यशैली में सुधार लाने को तैयार नही है। ऐसे में सवाल उठता है कि नगर निगम के कंप्यूटरों को जमीन निगल गई या आसमान खा गया।