नवीन चौहान
गुरूकुल कांगड़ी फार्मेसी की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने वाले एमडीएच मसाले के मालिक धर्मपाल महाशय का आज सुबह 5 बजकर 8 मिनट पर निधन हो गया। एक तांगे पर अपने व्यापार की शुरुवात करने वाले धर्मपाल गुलाटी ने देश में मसाले कारोबार को नई पहचान दी थी।
धर्मपाल महाशय दानवीर कर्ण की तरह दयालु थे। महाशय जी अपने वेतन का करीब 90 फीसदी हिस्सा दान कर देते थे।उद्योग जगत और समाज सेवा के क्षेत्र में उनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा। यही कारण है कि उनके निधन के बाद हरिद्वार के गुरूकुल कांगड़ी में शोक की लहर है। लेकिन उनके मसाले की सुगंध युग युगांतर तक उनकी याद दिलाती रहेगी।
पाकिस्तान से आकर दिल्ली में चलाया था तांगा
महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1923 में पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था। वे पढ़ाई में कमजोर थे, और पांचवी कक्षा में फेल हो गए थे। उनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। इससे उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया। शुरूआत में उन्होंने कई काम बदले, लेकिन उनका मन नहीं लगा। 15 साल की आयु के बाद उनके पिता ने छोटी से मसाले की दुकान खुलवा दी। इस दुकान पर काम अच्छा चलने लगा।
यहीं से उनके मसाले के कारोबार की नींव पड़ी थी। कंपनी की शुरुआत शहर में एक छोटे से दुकान से हुई, जिसे उनके पिता ने विभाजन से पहले शुरू किया थ। हालांकि, 1947 में देश आजाद होने के बाद सियालकोट को पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया तो उनका पूरा परिवार दिल्ली आ गया। जब वह दिल्ली आए तो उनके पास कुल 1500 रुपये थे। उन्होंने 650 रुपये में तांगा खरीद लिया। कुल दो महीने उन्होंने दिल्ली में तांगा चलाया, लेकिन वे नहीं चला पाए। उन्हें मसालों का अच्छा ज्ञान था तो वे मसाले का ही काम दिल्ली के करोलबाग में करने लगे। उनकी मेहनत के बल पर 1996 में मसालों की फैक्ट्री लगा ली। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक फैक्ट्री लगाते चले गए। उनकी कंपनियां आज 100 से अधिक प्रोडक्टस बनाने का काम करती है।
पद्मविभूषण से हो चुके हैं सम्मानित
कारोबार और फूड प्रोसेसिंग में योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पिछले साल महाशय धर्मपाल को पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।