देसंविवि में राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं छात्र अध्ययन यात्रा का शुभारंभ




अनुराग गिरी   

हरिद्वार। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं छात्र अध्ययन यात्रा का शुभारंभ हुआ। यह दो दिवसीय संगोष्ठी भारतीय भाषा, साहित्य और जनसंचार विषय पर निःशुल्क आयोजित की गई। इस राष्ट्रीय कार्यशाला में राष्ट्रीय संस्कृति संस्थान देव प्रयाग, गुरूकुल कांगड़ी हरिद्वार, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय समेत सात अन्य विश्वविद्यालय से आए छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया। इस कार्यक्रम के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार रहा। कार्यक्रम का शुभारंभ देसंविवि के कुलपति शरद पारधी एवं अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि कुलपति शरद पारधी ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाना चाहिए। हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार ही इसका सबसे सरल माध्यम है। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा के सौंदर्य और संरचना को संभाल कर रखने कि जिम्मेदारी हमारी है और इसे हमें निष्ठापूर्वक निभाना होगा। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय कि निदेशिका गांधारी जी ने हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न गतिविधियों से विद्यार्थियों को अवगत कराया।
देसंविवि के हिन्दी केन्द्र के समन्वयक डॉ नरेन्द्र सिंह ने कहा कि हिन्दी एक ऐसी भाषा है जो सबको एक सूत्र में पिरोती है।

भारत के 125 करोड़ लोगों में से लगभग 90 करोड़ को हिन्दी समझ आती है। विश्व में लगभग 6000 कुल भाषाएँ हैं, जिनमें 3000 भाषाएँ हिन्दी से मिलती-जुलती हैं। देसंविवि के सह संकायाध्यक्ष प्रो अभय सक्सेना ने कहा कि भाषा वह कड़ी है जो सभी को जोड़ती है। प्रो० सुरेश वर्णवाल ने कहा कि पं. राम शर्मा आचार्य का संपूर्ण जीवन ही साहित्य को समर्पित रहा। राम शर्मा आचार्य  हिन्दी को ही जनसामान्य कि भाषा मानते थे और उन्होंने हिन्दी 3200 से अधिक पुस्तकें में लिखीं। संस्कृत संस्थान देवप्रयाग के प्रवक्ता वीरेन्द्र सिंह ने कहा कि भाषा, विचारों को व्यक्त करने का सबसे सरल माध्यम है, शब्द ही मनुष्य के शत्रु एवं मित्र हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी एक मात्र ऐसी भाषा है जो भावों को सरलता से व्यक्त करती है। उन्होंने कहा कि बदलते स्वरूप की वजह से आज हम साहित्य एवं कविताओं कि टांग तोड़ते जा रहे हैं इस पर गौर करने कि आवश्यकता है, साथ ही उन्होंने कहा कि हिन्दी परिवर्तनशील है और यही उसकी सुंदरता है। इसके उपरान्त विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए शोधार्थियों ने अपने विषयों पर प्रस्तुति दी।
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के पंकज कुमार ने ‘युवा भारत में संचार क्रांति‘, गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय कि मोना शर्मा ने ‘विज्ञापन जगत में हिन्दी की उपयोगिता‘, उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय की आरती ने ‘जनसंचार रूप में हिन्दी का विकास‘ पर अपने विचार व्यक्त किए, इनके साथ-साथ सत्रह अन्य शोधार्थियों ने अपने विषयों पर शोधसार भी प्रस्तुत किये।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *