- कम दिखते हैं अब खुश्बू वाले चावल, परिवार का एक सदस्य जुड़ा हो खेती सेः प्रो. संगीता
मेरठ। सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में शनिवार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से निर्यात के लिए बासमती उत्पादन विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्घाटन कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केके सिंह व चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद पदम वैज्ञानिक डॉक्टर वीपी सिंह ने दीप प्रज्वलित कर किया।
कॉलेज ऑफ़ वेटरनरी साइंस के सभागार में आयोजित इस सेमिनार में कुलपति प्रो. केके सिंह ने अध्यक्षता करते हुए निर्यात के लिए गुणवत्ता युक्त बासमती चावल के उत्पादन एवं इसके द्वारा आय में वृद्धि विषय पर प्रकाश डालते हुए कृषकों को नई तकनीकी अपनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि धान उत्पादन के लिए ऐसी किस्मों का चुनाव करें जिसमें कम पानी लगता हो और विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छा उत्पादन देती देती हो कुलपति केके सिंह ने कहा कि प्रतिबंधित पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल बासमती खेती में नहीं करना चाहिए। बासमती का उत्पादन करते समय हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा वातावरण में कार्बन का उत्सर्जन कम हो, कम पानी में अधिक उत्पादन हो। उन्होंने कहा कि कार्यशाला में किसान अपनी जिज्ञासा के प्रश्न पूछ कर अपनी समस्या का समाधान कर सकते हैं।
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला ने मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए कहा कि बासमती धान जब बनते थे तो इसमें खुशबू बहुत आती थी लेकिन अब ऐसे चावल कम देखने को मिलते हैं किसानों को चाहिए कि आज तकनीकी के युग में खेती किसानी काफी आगे पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि खेती करते समय केमिकल का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए क्योंकि अधिक रसायनिक खादों का प्रयोग करने से कैंसर जैसी भयानक बीमारियां हो रही हैं। इसलिए रासायनिक खादों से और पेस्टिसाइड से बचना चाहिए प्रोफेसर संगीता शुक्ला ने कहा कि हर परिवार से कम से कम 1 सदस्य ऐसा होना चाहिए जो एग्रीकल्चर से जुड़ा हो तो निश्चित रूप से हमारा देश काफी आगे बढ़ सकता है। प्रोफेसर संगीता शुक्ला ने किसानों से आवाहन किया कि वे कृषि की नवीनतम तकनीकों का प्रयोग खेती में करें जिससे किसानों की आय बढ़ सकेगी।
पदमश्री वैज्ञानिक डॉक्टर बीपी सिंह ने बासमती चावल के उत्पादन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रत्येक 100 में से सात व्यक्ति चावल पर निर्भर रह कर जीविकोपार्जन कर रहा है। उन्होंने कहा चावल धन देता है और चावल में चावल यदि कोई है तो वह बासमती है। उन्होंने बताया कि पूरे विश्व में खुशबू वाली लगभग 1000 प्रजातियां हैं लेकिन वह सभी प्रजातियां बासमती नहीं है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1970 में बासमती की 370 प्रजाति सबसे पहले भारत में तैयार हुई और उसके बाद शोध करके अनेक बासमती की प्रजातियां विकसित की गई, जिसमें से 1121 दुनिया में सबसे लंबा बासमती के नाम से पहचाने वाला चावल है।
वैज्ञानिक डॉ रितेश शर्मा ने बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान ने उत्पादन तकनीक पर विस्तार से चर्चा की, डॉ अनुपम दीक्षित ने बासमती चावल के मानकों की जानकारी दी। निदेशक प्रसार डॉ पीके सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया तथा धन्यवाद प्रस्ताव निदेशक शोध डॉ अनिल सिरोही ने दिया। डॉ पीके सिंह ने बताया की कार्यक्रम में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 18 जनपदों के वैज्ञानिकों एवं प्रगतिशील कृषकों ने प्रतिभाग किया। किसान ज्ञान प्रतियोगिता में सहारनपुर, संभल, मुरादाबाद एवं मुजफ्फरनगर के प्रगतिशील किसानों ने प्रश्नों का सही उत्तर देकर पुरस्कार जीता।
कार्यक्रम में प्रोफेसर रामजी सिंह कुलसचिव, लक्ष्मी मिश्रा वित्त नियंत्रक, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट प्रोफ़ेसर आरएस सेगर, अधिष्ठाता कृषि डॉक्टर विवेक धामा, डॉक्टर रविंद्र कुमार, डॉक्टर कमल खिलाड़ी, डॉक्टर विजेंद्र सिंह, डॉक्टर लोकेश गंगवार, सत्येंद्र खारी, डॉक्टर गोपाल सिंह आदि लोग मौजूद रहे।
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