जिंदगी यू ही इम्तिहान नहीं लेती, जिंदगी की भी कुछ चाहत है आपसे




नवीन चौहान
जिंदगी यूं ही किसी इंसान का इम्तिहान नहीं लेती। जिंदगी की भी आपसे कुछ चाहत होती है। जिंदगी इंसान को कुछ दिखाने का हौसला देती है। जिंदगी आगे बढ़ने की दिशा दिखलाती है। कितने लोग जिंदगी को समझ पाते है और कितने लोग अपने भाग्य को कोसते हुए आंसू बहाते है। जिंदगी में हर इंसान अपने कर्मो के मुताबिक पाता है। फिर भी अपने कर्म सुधारने की दिशा इंसान कोई कदम नहीं बढ़ाता। इंसान के शरीर की सबसे बड़ी ताकत उसका मस्तिष्क है। जो सोचने समझने और कार्य करने के लिए निर्देशित करता है। मस्तिष्क के निर्देशानुसार ही इंसान के कर्मो का निर्धारण होता है। लेकिन लोभ, लालच में खोया हुआ इंसान अपने कर्म का दोष भाग्य के सिर थोपकर खुद को बेगुनाह बताता है। पूरी जिंदगी भाग्य को कोसते हुए जिंदगी से विदाई ले लेता है।
पृथ्वी पर किसी भी मनुष्य का जन्म एक उददेश्य की पूर्ति के लिए होता है। जन्म के बाद घर में खुशियां मनाई जाती है। लेकिन जब वो बालक बड़ा होकर सांसारिक और भौगोलिक परिवेश को समझने लगता है तो भाग्य को कोसने लगता है। जिस घर में उसके जन्म के वक्त खुशियां मनाई गई उसी घर को अपने भाग्यदोष का कारण समझने लगता है। आखिर ऐसा क्यो होता है। इंसान का मस्तिष्क जब सोचने और विचारने के लिए तैयार होता है तो सारा दोष भाग्य को ही क्यो देने लगता है। हर इंसान के माता—पिता अच्छे होते है। पंचतत्व के शरीर में भाग्य विधाता ने सभी इंसान को सर्वगुण संपन्न बनाया है। फिर इंसान अपने कर्मो पर विचार क्यो नही करता। बताते चले कि कर्म और भाग्य इंसान के जीवन में समानान्तर चलते है। कर्म अच्छे करेंगे तो भाग्य भी बेहतर रहेगा। इसके लिए इंसान को मानवता को जीवन में समाहित करना होगा। दूसरों की मदद करने की भावना को प्रबल करना होगा। लेकिन लालच में वशीभूत इंसान खुद को मददगार साबित कर मसीहा बनने की कोशिश करने लगता है। इंसान का यही अंहकार उसको इंसानियत से दूर कर देता है। ​वर्तमान दौर की बात करें तो समाजसेवियों की सूची बहुत लंबी है। लेकिन समाजसेवा के नाम पर इनके मस्तिष्क मे एक महत्वकांक्षा छिपी है। वही महत्वकांक्षा इंसान को इंसान से दूर कर रही है और परेशानी का कारण बन रही है। यही प्रबल महत्वकांक्षा इंसान के कर्म बन जाते है। जो आगे चलकर तकलीफ का कारण बनते है। आज समाज को वास्तव में इंसान की जरूरत है। जो इंसान की मदद कर सके। जिंदगी की भी यही चाहत है आपसे। मदद करो और आगे बढ़ चलो। जिंदगी में कोई इंसान के मतलबी होने पर अफसोस नही करना चाहिए। धोखा देने की प्रवृत्ति इंसान को हैवान बना देती है। धोखा देने वाला इंसान जीवन में सदैव दुखों में उलझा रहता है। लेकिन इंसान को यह बात कम ही समझ में आती है। क्योकि लालच मस्तिष्क पर हावी है और दोष भाग्य को देना है। इंसान इसके पीछे अपने कर्म को जानने की कोशिश कभी नही करता। पृथ्वी पर आज भी तमाम ऐसे इंसान है जो दीन दुखियों की मदद करते है और कभी उनको जाहिर नही करते। हालांकि ऐसे लोगों की तादात बहुत कम है। लेकिन पृथ्वी पर आज जो संतुलन बना हुआ है वह इन तमाम ऐसे इंसानों के कारण ही है। जो सभी की मदद करते है।
पृथ्वी अपना संतुलन स्वयं बना लेती है। कुल मिलाकर कहा जाए तो मनुष्य को अपने जीवनकाल में सभी की मदद के लिए आगे बढ़ना चाहिए। तभी वह इंसान कहलाने के काबिल कहा जा सकता है। यही इंसान के जीवन का इम्तेहान भी है।



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