पुलिस की आवाज बंद, हरिद्वारवासियों की नाक बंद, बोल बम—बोल बम





नवीन चौहान
सावन मास के म​हाशिवरात्रि पर हरिद्वार पहुंचने वाले करीब पांच करोड़ कांवड़ियों की सुरक्षा व्यवस्था में जुटी पुलिस की आवाज पूरी तरह से बंद हो चुकी है। सीटी बजाने और कांवड़ियों को जोर—जोर से चीखकर समझाने के चक्कर में पुलिस के गले पूरी तरह से जाम पड़ चुके है। पुलिस की जुबां से शब्द निकलने को तैयार नही है। वही अगर हरिद्वारवासियों की बात करें तो बदबू से उनकी नाक बंद हो गई है। शहर में पड़ा करोड़ों टन कूड़ा और बदसात के मलबे से आने वाली र्दुगंध ने नाक को बंद करने पर मजबूर कर दिया है। जबकि भोले के भक्तों का शोरगुल अभी शांत नही हुआ है। मानों कान से सीटी की आवाज सुनाई पड़ रही हो।


आस्था और भक्ति के इस पवित्र शिवरात्रि पर्व में कांवड़ियों के हुड़दंग की जबरस्त बयार देखने को मिली। एक ओर जहां आस्था का सैलाब उमड़ा। पुत्र अपने माता—पिता को कंधों पर बैठाकर कांवड़ यात्रा को सार्थक करते दिखाई दिए। कंधों पर कांवड़ ले जाते और बोल बम—बोल बम के नारे लगाते आस्थावान कांवड़ियों की भक्ति देखते ही बन रही थी। बेहद शांत चेहरे और मन में भगवान भोलेनाथ की आस्था से सराबोर कांवड़िये पुलिस की व्यवस्था में सहयोग करते दिखाई दिए। ऐसे शिवभक्त कांवड़ियों को देखते ही हिंदु धर्म के प्रति आस्था और मां गंगा के प्रति प्रेम की अटूट मिशाल देखने को मिलती है।
वही दूसरी ओर कांवड़ियों के वाहनों का जनसैलाब, जिन पर लगे कान फोड़ने वाले डीजे लगे थे। तेज आवाज में संगीत बजाकर अपनी भक्ति साबित करते कांवड़िए। पुलिस की व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए तमाम हथकंड़े अपनाते हुए कांवड़ियों की भीड़ अलग ही चल रही थी। इस भीड़ ने पुलिस के आंकड़ों को पूरा करने में जरूर महती भूमिका निभाई हो। लेकिन बीते चार दिन हरिद्वारवासियों को घरों में कैद रहने को विवश कर दिया।
हरिद्वार पुलिस प्रशासन चीख—चीखकर यातायात व्यवस्था को बनाने में जुटा रहा। लेकिन आस्था की आड़ में हुड़दंग मचाने वाले इन कांवडियों ने शहरवासियों को मुसीबत के अलावा कुछ ना दिया। पैट्रोल पंप व तेल नही मिला। दूध बाजार से गायब हो गया। मंडियों से सब्जी बाजार तक नही पहुंच पाई। सड़क पर जिधर देखा, वही मल त्याग कर दिया। डाक कॉवड़ ने कॉलोनियों में प्रवेश करके वहां भी कम हुड़दंग नही मचाया। हार्ट के तमाम मरीज भगवान भोलेनाथ को स्मरण कर अपने लिए जिंदगी की गुहार लगाने लगे। प्रदूषण ऐसा कि सांस के मरीजों की जान निकल जाए।
बस अगर किसी ने हौसला दिखाया तो हरिद्वार पुलिस ही रही। आखिरी पलों तक कांवड़ियों की सेवा और सुरक्षा में अपना हरसंभव प्रयास करती रही। किसी प्रकार की अनहोनी को टालने के लिए जतन करती रही। टकराव की स्थिति में पुलिस मूकदर्शक बनकर कांवड़ियों के हुडदंग को बर्दाश्त करती रही।
आखिरकार आस्था और भक्ति के नाम पर इस हुडदंग को कब तक हरिद्वार सहन करेगा। प्रशासन और पुलिस क​ब तक मूकदर्शक बनकर इनकी सेवा और सुरक्षा करती रहेगी।



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