भाजपा विधायकों ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र को किया बदनाम, सीएम नहीं करते काम





नवीन चौहान
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की छवि को खराब करने और उनको बदनाम करने का काम भाजपा विधायकों ने चार सालों तक खूब किया। पूर्व मुख्यमंत्री की छवि एक नकारा इंसान के रूप में समाज में पेश की। जबकि त्रिवेंद्र उत्तराखंड की गरीब जनता की सेवा करने में जुटे रहे। गरीब जनता के हितों की रक्षा करने के लिए अपनी ही पार्टी के भाजपा विधायकों से जूझते रहे और संघर्ष करते रहे। लेकिन उन्होंने भाजपा विधायकों के मंसूबों को पूरा नही होने दिया। माफियाओं के पैरोकार बने भाजपा विधायकों के सब्र का बांध टूटा तो सीएम की कुर्सी को भी बहा ले गया। भाजपा विधायक नेतृत्व परिवर्तन के जश्न को अपनी जीत के रूप में देखने लगे। विधायकों की खुशी का अंदाजा नही था। लेकिन सबसे बड़ी बात यह कि त्रिवेंद्र की जगह तीरथ विधायकों की इच्छाओं की पूर्ति किस प्रकार कर पायेंगे, यह देखने वाली बात होगी। भाजपा विधायकों को अपनी पसंद के जिलाधिकारी और एसएसपी जनपदों में मिल पायेंगे। या फिर त्रिवेंद्र की तरह ही तीरथ भी उनके निशाने पर होंगे। जनता सब देख और समझ रही है।
उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन भाजपा विधायकों के आक्रोष का परिणाम है। लोकतंत्र का उपहास है। उत्तराखंड की भोली भाली जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी वायदों पर भरोसा करते हुए प्रदेश में भाजपा को पूर्ण प्रचंड बहुमत दिया। उत्तराखंड में विकास की गति को तेज करने और पारदर्शी, भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने के लिए भाजपा हाईकमान ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी कुर्सी पर बैठने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वास के अनुरूप ही प्रदेश में जीरो टालरेंस की मुहिम शुरू की। नौकरशाहों और अधिेकारियों में ईमानदारी से कार्य करने की आदत को चरित्र में लाने का प्रयास किया। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रशासन और पुलिस के तंत्र को मजबूत करने के लिए जनपदों में ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसरों की तैनाती की। इन अफसरों ने भी तत्कालीन मुख्यमंत्री की अपेक्षाओं पर खरा उतरने हुए केंद्र और राज्य सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का कार्य किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत जनहित की योजनाओं को बनाते रहे और प्रशासनिक अफसर उन योजनाओं को धरातल पर उतारने की कवायद में जुटे हुए थे। लेकिन इन सबसे बीच खनन माफिया लॉबी पूरी तरह से विचलित हो चुकी थी। सचिवालय के दरवाजे माफियाओं के लिए पूरी तरह से बंद हो चुके है। माफियाओं ने विधायकों को पैरोकार बनाकर अपने लिए उत्तराखंड को खोखला करने का रास्ता चुना तो तत्कालीन मुख्यमंत्री ने विधायकों की बातों को अनसुना कर दिया। विधायकों ने जिलाधिकारियों को बदलने की कोशिशे तेज कर दी। पूर्व मुख्यमंत्री ने विधायकों को साफ कहा कि जिलाधिकारियों ने भ्रष्टाचार किया है तो तत्काल बदल दिया जायेगा। यहां भी विधायकों की अपनी अनदेखी लगी। माफिया लॉबी का दबाब विधायकों पर बढ़ता जा रहा था। माफियाओं के चार साल एक ईमानदार मुख्यमंत्री के कारण खराब हो गए थे। माफियाओं की कमाई बंद थी। विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा था। विधायकों को चुनावी फंडिंग का रास्ता भी दिखाई नही पड़ रहा था। बहराल विधायकों का आक्रोष बढ़ने लगा। जिसका नतीजा ही नेतृत्व परिवर्तन है।
ये भी एक कारण
एक ईमानदार मुख्यमंत्री और विधायकों के बीच माफिया लॉबी पूरी तरह से परेशान थी। माफिया लॉबी विधायकों को पूरी तरह से हावी हो चुकी थी। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के मामले में किसी की कुछ सुनने को तैयार नही थे। उत्तराखंड के सचिवालय में दलालों और माफियाओं की एंट्री पूरी तरह से बंद हो चुकी थी। विधायकों ने मुख्यमंत्री के काम ना करने और निकम्मा होने का प्रचार जनता में करना शुरू कर दिया। जनता में कहा जाने लगा कि सीएम कोई काम ही नही करते और किसी की नही सुनते है।
दो करोड़ लेकर एसएसपी को बदलने पहुंचा
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में खनन माफियाओं की लॉबी हरिद्वार के एसएसपी की ईमानदारी से पूरी तरह से परेशान हो चुकी थी। एसएसपी ने अवैध खनन नही होने दिया तो वह उनका तबादला कराने के लिए देहरादून पहुंच गए। माफियाओं ने दो करोड़ सिर्फ एसएसपी को बदलने के लिए जुटाए। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ईमानदारी नही खरीद पाए। पूर्व सीएम रावत ने माफियाओं से मिलने से साफ इंकार कर दिया। जिसके बाद माफिया मुख्यमंत्री को निकम्मा होने का आरोप लगाते हुए बैरंग लौट गए। ये तो एक किस्सा है जनाब। ईमानदारी से कार्य करने की राह में बहुत अड़चने आती है।
ईमानदारी के किस्से

ईमानदारी शब्द कहने और सुनने में अच्छा लगता है। लेकिन जब बात चरित्र में उतारने की आती है तो अपने ही दुश्मन नजर आते है। राजनीति में नीति से चलने की कवायद का खामियाजा त्रिवेंद्र को कुर्सी खोकर भुगतना पड़ा। लेकिन उनको अपने जीवन में इस बात की आत्म संतुष्टि जरूर रहेगी कि अपनी जन्मभूमि की सेवा करने का जब उनको अवसर मिला तो उन्होंने इमान नही बेचा। इतिहास इस बात का गवाह रहेगा कि उत्तराखंड के एक मुख्यमंत्री ईमानदारी पर अडिग रहे। उनके कार्यकाल में सभी नौकरशाहों व अधिकारियों ने पूरी ईमानदारी से कार्य किया हो ऐसा भी नही है। कुछ ने उनके विश्वास की आड़ में अपने हितों को साधा होगा। लेकिन पूर्व सीएम ने कुर्सी पर बैठकर अपनी जनता के साथ कभी विश्वासघात नही किया। ​

तीरथ सिंह रावत की चुनौती
भाजपा हाईकमान ने भाजपा विधायकों के आक्रोश को शांत करने फलस्वरूप मुख्यमंत्री की कुर्सी तीरथ सिंह रावत को सौंपी। एक सरल हृदय और साधारण व्यक्तित्व के इंसान तीरथ सिंह रावत को जनता और अपने ही विधायकों के बीच की अग्निपरीक्षा से गुजरना है। विधायकों की गलत इच्छाओं को रोकने की सबसे बड़ी चुनौती है। तीरथ सिंह रावत की सरलता की प्रशंसा तो खुद पूर्व सीएम त्रिवेंद्र भी कर चुके है। लेकिन जिस बाल पर त्रिवेंद्र हिट विकेट हुए उस बॉल पर तीरथ कैसे डिफेंस करेंगे। यह देखने वाली बात होगी।भाजपा विधायकों ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र ​की छवि बिगाड़ने का जो कार्य किया वह वर्तमान सीएम तीरथ सिंह के साथ ना करें। नही तो जनता आपको विधानसभा चुनाव में घर बैठा देगी। तीरथ सिंह रावत की सरलता और क्षमता और नेतृत्व कुशलता में कोई कमी नही है। बस विधायक अड़चने पैदा ना करें तो तीरथ की रफ्तार भी तेज ही होगी। भाजपा पुन: सत्ता में वापिसी कर सकती है। त्रिवेंद्र के कार्य ही भाजपा को जीत दिलाने के लिए काफी है, बस आपको जनता को गिनाने बाकी है।



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