एकात्म मानववाद के नाम से आर्थिक एवं सामाजिक चिंतन करने वाले पंडित दीनदयाल की पुण्यतिथि पर याद किया उनका बलिदान




नवीन चौहान
जिला कार्यालय भाजपा हरिद्वार पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि मनाई गई। जिसमें पंडित दीनदयाल को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। जिलाध्यक्ष डॉ जयपाल सिंह चौहान ने कहा कि देश में समतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार एवं अपने प्राण राष्ट्र को अर्पित करने वाले भारतीय राजनीति के पुरोधा हमारे पद पथ प्रदर्शक और प्रेरणा के स्रोत श्रद्धेय पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि आज हम समर्पण दिवस के रूप में मना रहे हैं। पंडित दीनदयाल को एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन काफी कठिन परिस्थितियों में गुजरा। 25 सितम्बर, 1916 को जयपुर से अजमेर मार्ग पर स्थित ग्राम धनकिया में अपने नाना पण्डित चुन्नीलाल शुक्ल के घर जन्मे दीनदयाल उपाध्याय ऐसी ही विभूति थे। दीनदयाल के पिता श्री भगवती प्रसाद ग्राम नगला चन्द्रभान जिला मथुरा उत्तर प्रदेश के निवासी थे। तीन वर्ष की अवस्था में ही उनके पिताजी का तथा आठ वर्ष की अवस्था में माताजी का देहान्त हो गया। दीनदयाल का पालन रेलवे में कार्यरत उनके मामा ने किया। ये सदा प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होते थे। कक्षा आठ में उन्होंने अलवर बोर्ड, मैट्रिक में अजमेर बोर्ड तथा इण्टर में सर्वाधिक अंक पाये थे। 14 वर्ष की आयु में इनके छोटे भाई शिवदयाल का देहान्त हो गया। 1939 में उन्होंने सनातन धर्म कॉलेज कानपुर से प्रथम श्रेणी में बीए पास किया। यहीं उनका सम्पर्क संघ के उत्तर प्रदेश के प्रचारक श्री भाऊराव देवरस से हुआ। इसके बाद वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए एमए करने के लिए वे आगरा आए पर घरेलू परिस्थितियों के कारण स्नातकोत्तर की पढ़ाई को पूरा नहीं कर पाए। प्रयाग से इन्होंने एलटी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। संघ के तृतीय वर्ष की बौद्धिक परीक्षा में उन्हें पूरे देश में प्रथम स्थान मिला था। अपनी मामी के आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी। उसमें भी वे प्रथम स्थान पर रहे तब तक वे नौकरी और गृहस्थी के बन्धन से मुक्त रहकर संघ को सर्वस्व समर्पण करने का मन बना चुके थे। इससे इनका पालन-पोषण करने वाले मामा जी को बहुत कष्ट हुआ। इस पर दीनदयाल जी ने उन्हें एक पत्र लिखकर क्षमा मांगी। वह पत्र ऐतिहासिक महत्त्व का है। 1942 से उनका प्रचारक जीवन गोला गोकर्णनाथ (लखीमपुर, उ.प्र.) से प्रारम्भ हुआ। 1947 में वे उत्तर प्रदेश के सहप्रान्त प्रचारक बनाए गए। 1951 में डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने नेहरू की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों के विरोध में केन्द्रीय मंत्रीमंडल छोड़ दिया। वे राष्ट्रीय विचारों वाले एक नए राजनीतिक दल का गठन करना चाहते थे। उन्होंने संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी से सम्पर्क किया। गुरुजी ने दीनदयाल को उनका सहयोग करने को कहा। इस प्रकार भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई। दीनदयाल प्रारम्भ में उसके संगठन मन्त्री और फिर महामन्त्री बनाए गए। 1953 के कश्मीर सत्याग्रह में डा. मुखर्जी की रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में मृत्यु के बाद जनसंघ की पूरी जिम्मेदारी दीनदयाल जी पर आ गई। वे एक कुशल संगठक, वक्ता, लेखक, पत्रकार और चिन्तक भी थे। लखनऊ में राष्ट्रधर्म प्रकाशन की स्थापना उन्होंने ही की थी। एकात्म मानववाद के नाम से उन्होंने नया आर्थिक एवं सामाजिक चिन्तन दिया, जो साम्यवाद और पूंजीवाद की विसंगतियों से ऊपर उठकर देश को सही दिशा दिखाने में सक्षम है। उनके नेतृत्व में जनसंघ नित नये क्षेत्रों में पैर जमाने लगा। 1967 में कालीकट अधिवेशन में वे सर्वसम्मति से अध्यक्ष बनायेे गये। चारों ओर जनसंघ और दीनदयाल जी के नाम की धूम मच गयी। यह देखकर विरोधियों के दिल फटने लगे। 11 फरवरी, 1968 को वे लखनऊ से पटना जा रहे थे। रास्ते में किसी ने उनकी हत्या कर मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर लाश नीचे फेंक दी। इस प्रकार अत्यन्त रहस्यपूर्ण परिस्थिति में एक मनीषी का निधन हो गया। हमें उनके पद चिन्हों पर चलकर अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति की चिंता कर उनके विचारों को आगे बढ़ाने का काम करना है इस अवसर पर जिला मंत्री आशु चौधरी, अनामिका शर्मा, जिला कार्यालय प्रभारी लव शर्मा, मंडल अध्यक्ष नागेंद्र राणा, पार्षद विपिन शर्मा, पार्षद विकास कुमार, कमल प्रधान, राव जमीर, पंकज धीमान, चंचल, नितिन शर्मा आदि पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता उपस्थित रहे।



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