नवीन चौहान, हरिद्वार। प्रचंड बहुमत से उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज भाजपा सरकार को 2019 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस एक बार फिर पुराने इतिहास को दोहरायेगी और पांच सीटों की जीत दर्ज करेंगी। भाजपा सरकार की डेढ़ साल की नाकामी का खामिजाया लोकसभा चुनाव में हार के रूप में सामने आयेगा। कारोबारी तो भाजपा से पहले से ही नाराज चल रहे है। अब निजी स्कूलों के बाद अभिभावक भी भाजपा से खिन्न हो गये है। भाजपा सरकार अपने कार्यकाल में जनता के लिये कोई भी उपलब्धियों का कार्य नहीं किया। जिसको बताकर वह जनता से वोट मांग सके।
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड में डबल इंजन लगाने की बात की थी। उत्तराखंड की भोली भाली जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों पर यकीन किया और दिल खोलकर भाजपा के पक्ष में मतदान किया। जिसका नतीजा ये रहा कि 70 विधानसभा सीटों में 57 सीटें भाजपा जीत गई। प्रचंड बहुमत की सरकार की कमान आरएसएस की पृष्ठभूमि से जुड़े त्रिवेंद्र सिंह रावत को दी गई। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जीरो टालरेंस की मुहिम शुरू करने के साथ ही धीमी रफ्तार के साथ उत्तराखंड में विकास कार्यों को कराना शुरू किया। उनके विकास कार्य धरातल पर पूरे उतरते दिखाई नहीं दिये। आर्थिक संकट से जूझ रहे उत्तराखंड प्रदेश में सरकार आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने में कोई पहल नहीं कर पाई। बेरोजगारी का संकट गहराने लगा। डेढ़ साल में सरकारी महकमों में भर्तियां तक नहीं निकाली जा सकी। प्रदेश से पलायन पूर्व की तरह जारी रहा। इन सभी के बीच केंद्र सरकार के नोटबंदी और जीएसटी के निर्णय ने उत्तराखंड के कारोबारियों की कमर तोड़ दी। प्रॉपटी कारोबार पूरी तरह से ठप पड़ गया। इसी बीच उत्तराखंड सरकार ने चंद नेताओं के शोर मचाने पर निजी स्कूलों की लूट को बंद करने के नाम पर एनसीईआरटी की किताबों का राग छेड़ दिया। प्रदेश के सभी निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें सख्ती से लागू कराने की मुहिम शुरू की। सरकार के इस फैसले ने भाजपा की किरकिरी करा दी। निजी स्कूल सरकार से नाराज हो गये। वहीं अभिभावक भी सरकार की ओर से दी गई एनसीईआरटी की तीन किताबों को लेकर खिन्न हो गये। एनसीईआरटी की किताबों में कंप्यूटर, आर्ट एंड काफ्ट, जीके और तमाम वो किताबें गायब हो गइंर् तो बच्चों को प्रतिस्पर्धा के युग में मेघावी बनाती थी। इन किताबों के पीछे सरकार ने तर्क दिया कि मंहगे प्राइवेट पब्लिकेशन की पुस्तकों से जनता को निजात दिलाई गई है। इससे निजी स्कूलों की लूट खरोट बंद हो जायेगी। अब सरकार को कौन बताये कि लाखों रूपया एडमिशन में खर्च करने वाले अभिभावक जो अपने बच्चे को निजी स्कूल में पढ़ाते हैं वो तीन किताबों से कितना राहत पा लेंगे। सरकार ने कॉशन मनी बंद कराई तो इससे भी अभिभावको का कोई लाभ नहीं हुआ। आखिरकार सरकार का किताबों का फैसला एक हास्यासपद मजाक बनकर रह गया। अब बात करते हैं निजी स्कूलों की फीस कि तो सरकार इस दिशा में कोई कदम आगे नहीं बढ़ा पाई। सरकार ने फीस को लेकर एक डाफ्ट तैयार किया है। जिसको लागू करने का साहस सरकार नहीं दिखा पा रही है। ऐसे में अभिभावको की सरकार से खासी नाराजगी बढ़ गई है। वहीं प्रदेश में पर्यटन कारोबारी भी इस साल नाराज हो गये हैं। सरकार की ओर से चारधाम यात्रा को लेकर कोई तैयारी नहीं की गई। अब सवाल उठता है कि सरकार किन उपलब्धियों की बात कर रही है। जिनका जनता से कोई सीधा सरोकार नहीं है। उत्तराखंड की तहसील जीरो टालरेंस की मुहिम को चिढ़ा रहे हैं। पटवारी खुलेआम दाखिल खारिज के नाम पर धन बटोर रहे हैं। रजिस्ट्री कार्यालय में एक फीसदी कमीशन बदस्तूर जारी है। एनएच घोटाले की जांच सीबीआई को देने में सरकार ठिठक रही है। डबल इंजन की भाजपा सरकार नई बोतल में पुरानी शराब की तर्ज पर ही चल रही है। सरकार के पास ना बताने के लिये कुछ है और ना ही जनता को देने के लिये कुछ है। यही कारण है कि जनता ना चाहते हुये भी कांग्रेस के पक्ष में खड़ी दिखाई दे रही है।