‘इण्डियन साइंस कांग्रेस’ में गुरुकुल के वैज्ञानिक ने फहराया अपना परचम




सोनी चौहान
ब्रिटिश काल से चली आ रही ‘इण्डियन साइंस कांग्रेस’ का 107वां अधिवेशन बंगलौर में आयोजित किया गया। प्रधानमंत्री ने 3 जनवरी को इस महासम्मेलन का उद्घाटन किया था। इस कार्यक्रम में करीब पन्द्रह हजार वैज्ञानिकों ने भाग लिया। इस राष्ट्रीय सम्मेलन में गुरुकुल कांगड़ी विश्ववि़द्यालय के कई वरिष्ठ, कनिष्ठ वैज्ञानिकों, शोध छात्र सहित लगभग 15 लोगों ने शोध कार्यों की प्रस्तुति दी।
पूर्व कुलपति और सुप्रसिद्ध माइक्रोबायोलोजिस्ट प्रो डीके माहेश्वरी, रसायन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो आरडी कौशिक, कुलसचिव प्रो दिनेश भट्ट, उपपरीक्षा नियन्त्रक व सुप्रसिद्ध पर्यावरण विज्ञानी प्रो पीसी जोशी, इंजीनियरिंग फैकल्टी से डा सुयश भारद्वाज, डा लाम्बा, शोध छात्र दिलीप मनसोत्रा, गौरव पन्त, शिवालिका शर्मा, मीरा गोस्वामी इत्यादि ने भाग लिया। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के लिये अत्यन्त गौरव की बात है कि वर्तमान साइंस कांग्रेस में प्रो पीसी जोशी को ‘‘एनीमल साइंस सैक्सन’’ का अध्यक्ष चयनित किया गया।

प्रो पीसी जोशी ने बताया कि प्रतिदिन 3 कक्षाओं में समानान्तर सत्र चलाये गये। जिसमें 172 शोध पत्र जन्तु विज्ञान, पशु चिकित्सा, मत्स्य विज्ञान से संबंधित थे। उक्त सेक्शन में विद्वान वक्ताओं ने कीट प्रजातियों और मत्स्य प्रजातियों की विविधता एवं इन प्रजातियों पर मानव अतिक्रमण, नदीयों पर फैक्ट्रियों से हो रहे है। रसायन-प्रदूषण पर वृहद चर्चा की और जीव जन्तुओं की कई महत्वपूर्ण प्रजातियों पर मंडरा रहें खतरो से आगाह किया।
प्रो पीसी जोशी ने बताया कि सिल्क बनाने वाले कीटों की प्रजातियों और उनके द्वारा चयनित पौघों पर हिमालय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के चलते अनेक खतरे मंडरा रहे है। सिल्क इण्डस्ट्री के लिये यह गम्भीर खतरा है। भारत सिल्क की साड़ियों के लिये जगत विख्यात है। लेकिन कीटों को सही पोषण न मिलने से व जलवायु परिवर्तन से सिल्क उद्योग निकट भविष्य में खतरे की जद में है।
प्रो डीके माहेश्वरी ने बताया कि किस प्रकार कई किस्म के माइक्रोव कृषि क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। किन्तु अत्यधिक रसायनिक खादों के प्रयोग से कृषि के उपयोगी बैक्टिरियों को नुकसान पहुंच रहा है जबकि उनका मिट्टी में रहना कृषि के लिए उपयोगी है। अतः जैविक खेती से ही बैक्टिरियों की रक्षा की जा सकती है।

प्रो आरडी कौशिक ने रसायन विज्ञान के महत्व पर प्रकाश डालते हुये समझाया कि रसायन विज्ञान की सही समझ सामान्य जनों व किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है ताकि रसायनिक प्रदूषण की समस्या का निदान वैज्ञानिक तरीके से किया जा सके।
प्रो दिनेश भट्ट ने बताया कि पक्षियों में ध्वनि विज्ञान के माध्यम से पक्षियों की नई प्रजातियों को समझने में मदद मिलती है और शहरी क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण के चलते कई पक्षियों की प्रजातियों में प्रजनन नही हो पाता है। यहां तक कि साल में दो बार प्रजनन करने वाली गौरया कई शहरो में विलुप्त होने के कगार पर है जबकि पन्द्रह बीस वर्ष पूर्व यही गौरया घर के आंगन में चहचहाती थी और सुखद अनुभव प्रदान करती थी। आज गौरया की चहचहाहट नयी पीढ़ी को सुनने को भी नही मिल रही है। आज गौरया घर से गायब हो रही है तो कल मनुष्य की बारी है। उन्होंने यह भी बताया कि पक्षियों में नर ज्यादा सुन्दर होता है और वही नृत्य व गाना गाकर मादा पक्षी को प्रजनन और जोड़ा बनाने हेतु आमन्त्रिक करता है। किन्तु अत्यधिक शहरीकरण व औद्योगिकीकरण से पक्षियों की प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है। सूच्य है कि कीटों व पक्षियों की विभिन्न प्रजातिया ही फसलों में प्रजनन के लिये महतवपूर्ण भूमिका निभाते है अतः इनका संरक्षण समय की मांग है।
कुलपति प्रो रूप किशोर शास्त्री ने कहा कि गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के द्वारा भारतीय विज्ञान परिषद में उच्च स्तर पर विज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय काम किया है। विज्ञान के क्षेत्र में देश-विदेश में भी गुरुकुल को अच्छे पहिचान दिलाई है। पक्षी विज्ञानी डॉ दिनेश भट ने विदेशों सम्मेलनों में अध्यक्षता और मुख्यातिथि के रूप में तथा हाल ही में बगलौर में आयोजित साइंस काग्रेस की एक सत्र अध्यक्षता कर गुरुकुल का गौरव बढ़ाया है।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *