पुलिस सुपरमैन नहीं हमारी तरह इंसान है, जानिए पूरी खबर




नवीन चौहान, हरिद्वार। जनता की सुरक्षा में तैनात रहने वाली पुलिस से जनता को जरूरत से कुछ ज्यादा ही उम्मीद होती है। 100 नंबर पर सूचना देने के चंद मिनटों में पुलिस को सामने देखने की उम्मीद सभी में होती है। ऐसे में अगर सड़क पर जाम के कारण चंद मिनट की देरी से पुलिस मौके पर पहुंती है तो पुलिस को लापरवाही के आरोपों का सामना करना पड़ता है। पुलिस को अपने अधिकारियों की झाड़ खाने को मिलती हैं। ऐसे में पुलिसकर्मियों का मनोबल टूटता है। रात्रि डयूटी करने के बाद अगर थकान उतारने के लिए सिपाही पल भर के लिए पलक झपक ले तो वो मीडिया की सुर्खिया बन जाता है। यदि पुलिस सूचना पर देरी से पहुंचे तो लापरवाह कहलाती हैं। भारत के नागरिक पुलिस को सुपरमैन की तरह तो देखना चाहते है लेकिन यह भूल जाते है कि वो भी हमारी तरह इंसान है।
भारत देश के नागरिकों की सुरक्षा और व्यवस्था के लिये सभी राज्यों में पुलिस फोर्स का गठन किया गया था। पुलिस के जवानों को कानून का अनुपालन कराने और जनता की सुरक्षा करने की विशेष टैªनिंग दी जाती है। कानून के दायरे में रहकर अनुशासित पुलिसकर्मी अपनी डयूटी करता है। लेकिन डयूटी के दौरान पुलिस के जवानों को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। अगर हम पुलिस महकमे के एक अहम पद कांस्टेबल की बात करें तो वह सबसे ज्यादा कठिन परिस्थितियों का सामना करता हैं। कांस्टेबल पुलिस विभाग की रीढ़ की हड्डी की तरह मजबूत होता हैं। संबंधित क्षेत्रों से आने वाली सूचनाओं पर त्वरित पहुंचने वाला पुलिस कांस्टेबल ही होता है। उसके सहयोगी थानाध्यक्ष और कोतवाल से लेकर तमाम अधिकारी होते है। क्षेत्रों में अपराध को काबू करने से लेकर अपराधी तत्वों की सूची बनाने और वारंट तामील कराने की जिम्मेदारी कांस्टेबल की ही होती है। वैसे तो सभी पुलिसकर्मी 24 घंटे डयूटी पर अलर्ट रहते है। लेकिन सबसे ज्यादा जवाबदेही कांस्टेबल की होती है। कांस्टेबल के कार्य पर थानाध्यक्ष से लेकर क्षेत्राधिकारी और कप्तान तक की नजर बनी होती है। इस डयूटी में कहीं लापरवाही दिखाई दी तो सबसे पहले गाज कांस्टेबल पर गिरती है। लेकिन आज हम बात करते है एक कांस्टेबल की जिसकी परेशानियों पर जनता से लेकर अधिकारी कोई गौर करना नहीं चाहते है। कांस्टेबल अपनी सभी परेशानियों को दिल में दबाकर अपने कर्तव्य का पालन करता है। पुलिस डयूटी करने में कांस्टेबल अपने परिवार की जिम्मेदारियों तक को पूरा नहीं कर पाता है। माता-पिता, पत्नी और बच्चों के साथ सामाजिक रिश्तों के दायित्वों को पूरा करने में कांस्टेबल असफल रहता है। धार्मिक पर्वो के हर्षोल्लास से पुलिस दूर हो जाती है। समाज के नागरिक पुलिस को सिर्फ पुलिस समझते है। पुलिस के त्याग और समर्पण से नागरिक कोई सरोकार नहीं रखते है। यही कारण है कि सबसे ज्यादा सम्मान पाने का हकदार कांस्टेबल मन ही मन एक टीस लेकर पुलिस डयूटी पूरी करता है। यही टीस कई बार उनके चेहरे पर एक चिड़चिड़ाहट के रूप में दिखाई पड़ती है। कांस्टेबल की चिड़चिड़ाहट उसकी झुझलाहट के रूप में कई बार नागरिक पर उतरती है तो उसको असभ्य और गैर जिम्मेदार होने का तमगा मिलता है। अगर भारत के नागरिक पुलिस को अपने परिवार के सदस्य के रूप में देखे और उसका सहयोग करने का इरादा रखे तो जनता को पुलिस का एक दूसरा मानवीय दृष्टिकोण वाला चेहरा देखने को मिलेगा। जो शायद नागरिको की कल्पना से परे होगा।
अधिकार तो पता है पर कर्तव्य से अंजान
भारत के नागरिकों को अपने अधिकारों का तो बोध है लेकिन जब कर्तव्य की बारी आती है तो वो अंजान बन जाते है। ऐसा ही कुछ पुलिस और जनता के बीच में है। पुलिस हमारी सुरक्षा के लिये है इस बात का पता तो देश के एक सामान्य से सामान्य आदमी को भी है। लेकिन जनता को पुलिस का सहयोग करना है इस कर्तव्य का कितने लोग पालन करते है।  अपने आसपास क्षेत्र में संदिग्धों की सूचना किसी ने पुलिस को दी हो। पुलिस के साथ एक शिष्टाचार मीटिंग की हो। पुलिस को बिना किसी झगड़े फसाद के अपनी कॉलोनी में बुलाया हो। अगर क्षेत्र के सभी नागरिक पुलिस के साथ शिष्टाचार मीटिंग करें और संदिग्धों की सूचना पुलिस को दे तो काफी हद तक आपराधिक वारदात पर अंकुश लग जायेगा और पुलिस से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित होंगे।
गलती हमारी सुधारेगी पुलिस
पुलिस का पहला कार्य क्षेत्र में शांति व्यवस्था को बनाये रखने का होता है। लेकिन वर्तमान दौर में पुलिस पर असीमित कार्य है। वीवीआईपी डयूटी, यातायात व्यवस्था, नागरिकों की सुरक्षा, अपराधियों को पकड़ना, वारंट तामील कराना, अतिक्रमण हटाना, जनता को हेलमेट पहनाना, गुमशुदा को तलाश करना, पति पत्नी के बीच विवाद को शांत कराना, बुजुर्गो की हिफाजत करना, अवैध खनन की छापेमारी पर प्रशासन के साथ रहना, ऑन लाइन ठगी को रोकना, ठगी हो गई तो पीडि़तों को उनकी रकम दिलाना, प्रोपर्टी विवाद को रोकना। मुकदमों की विवेचना करने से लेकर तमाम झूठी सच्ची शिकायतों की जांच करना। अगर वास्तव में गौर करा जाये तो हेलमेट पहनाना क्या वास्तव में पुलिस का कार्य है। जनता को अपनी सुरक्षा खुद नहीं करनी चाहिये। ऑन लाइन ठगी लालच और लापरवाही के कारण होती है। क्या अपना गोपनीय पासवर्ड किसी को बताकर खुद लूट जाना उचित है। लेकिन हम लोग सिर्फ और सिर्फ पुलिस से ही न्याय की उम्मीद करते है। चाहे लापरवाही हमारी ही क्यो ना हो। आखिरकार पुलिस को इंसान समझने का सुधार अपनी सोच में हम कब करेंगे। इस सवाल का जबाव आपको खुद सोचना है।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *