उत्तराखंड में आयेंगे राजनैतिक भूकंप, कांग्रेसी विधायक देंगे झटके





नवीन चौहान
उत्तराखंड में अभी कई सियासी भूकंप के झटके देखने को मिलेंगे। कांग्रेसी विधायकों का करंट भाजपाईयों को जबरदस्त तरीके से लगेगा। सबसे बड़ा सियासी भूकंप साल 2022 के विधानसभा चुनाव और परिणामों के बाद देखने को मिलेगा। हालांकि इन राजनैतिक भूकंपों का अनुमान लगाना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन सत्ता की कुर्सी के खेल में पार्टी और निष्ठा बदलना कोई नया सिलसिला नही है। वर्तमान सत्ता सुख भोगना और राजनैतिक भविष्य की उम्मीद में अपनी निष्ठा बदलना ही नेताओं की फितरत है। फिलहाल तो नेतृत्व परिवर्तन के साथ ही उत्तराखंड की सियासत में गर्माहट बरकरार है।
यूं तो उत्तराखंड में जनता की चुनी हुई सरकार को अस्थिर करना और सूबे के मुखिया की ​कुर्सी से हटाने और विधायको के दल—बदलने का सिलसिला नया नही है। लेकिन हम बात शुरू करते है कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के वक्त की। जब करीब 11 विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ली थी। जिसके बाद साल 2017 में विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल विधायको को टिकट मिला और 70 में से 57 सीटे जीतकर प्रचंड बहुमत से भाजपा की सरकार सत्ता में आई। भाजपा हाईकमान ने सूबे की कमान संघ प्रचारक रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को दी। इस वक्त मुखिया बनने की उम्मीद सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत और यशपाल आर्य सरीखे राजनीति के अनुभवी विधायकों को थी। लेकिन कांग्रेसी विधायकों को निराशा हाथ लगी। त्रिवेंद्र सरकार में कांग्रेसी विधायक कार्य तो करते रहे लेकिन मन ही मन असंतुष्ट ​रहे। सुरक्षित राजनैतिक भविष्य की तलाश में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विधायकों के मन में मुखिया बनने की उम्मीद हिलौरे मार रही थी। लेकिन इन कांग्रेसी विधायकों को मालूम था कि भाजपा हाईकमान में इनकी सुनवाई नही होगी। इनको पर्याप्त तब्बजो भी नही मिलेगी। लेकिन तमाम कांग्रेसी विधायक शांत रहे और मौके की तलाश में रहे। बस कुछ ऐसी ही टीस त्रिवेंद्र विरोधी गुट के विधायकों में भी थी।
त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड की जनता को एक सुशासन देने का प्रयास कर रहे थे। उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति के अनुरूप विकास योजनाओं को मूर्तरूप देने में जुटे थे। केंद्र और राज्य सरकार की तमाम योजनाओं को जनता तक पहुंचाने के लिए नौकरशाहों को निर्देशित कर रहे थे। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ईमानदारी से कार्य करते हुए जनहित के कार्यो को प्राथमिकता दे रहे थे। वह लगातार क्षेत्रों में सक्रिय थे। त्रिवेंद्र पूरी तरह से चुनावी मोड़ में आ चुके थे। सरकार के चार साल पूरे होने के जश्न के साथ प्रदेश में कुछ अच्छी घोषणाओं का इरादा करने का मुन बना चुके थे। बस यही बात और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की कार्यशैली तमाम विधायकों को रास नही आई। विधायकों को लगने लगा कि आगामी चुनाव त्रिवेंद्र के नेतृत्व में लड़ा जायेगा तो अगला मुख्यमंत्री भी वही बनेंगे। प्रदेश में ईमानदारी से कार्य होगा और जीरो टालरेंस की मुहिम के चलते वह कुछ कमाई धमाई भी नही कर पायेंगे।
बस यही से विधायकों ने त्रिवेंद्र को पटखनी देने की पटकथा तैयार की गई। करीब 22 विधायकों ने त्रिवेंद्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। त्रिवेंद्र ने भाजपा हाईकमान के आदेशों के अनुरूप अपना इस्तीफा दे दिया। भाजपा हाईकमान ने इस हाई वोल्टेज ड्रामे का अंत करने और असंतुष्ट विधायकों को खुश करने के लिए त्रिवेंद्र का चेहरा बदलकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। तीरथ सिंह रावत एक सुलझे हुए और सरल व्यक्तित्व के इंसान है।
भाजपा हाईकमान ने दूसरा फेरबदल प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर मदन कौशिक की ताजपोशी हो लेकर किया। हरिद्वार से चार बार के विधायक मदन कौशिक को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी। मदन के अध्यक्ष बनते ही पहाड़ विरोधी मानसिकता के ओडियो वायरल होने की खबरे आने लगी। यानि मदन कौशिक की छवि को खराब करने का प्रयास किया जाने लगा। मदन कौशिक संगठन और सरकार को साथ लेकर चलने की बात करते रहे।
दूसरी तरफ प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार ने नेतृत्व परिवर्तन के बाद हाईकमान के आदेशों के अनुरूप सब कुछ सामान्य दिखाने का प्रयास किया। मीडिया को ऐसे दिखाया जैसे परिवार में जमा खर्च की जिम्मेदारी दूसरे भाई को दे दी गई है। परिवार में प्यार और सदभाव है। लेकिन अगर राजनीति के लिहाज से देखा जाए तो ऐसा बिलकुल नही है। त्रिवेंद्र की कुर्सी खिसकाने में सहयोग करने वाले कांग्रेसी विधायकों के हाथ खाली रह गए। बस कुछ नया हुआ तो भाजपा के ही चार विधायक विशन सिंह चुफाल, स्वामी यतीश्वरानंद, गणेश जोशी और बंशीधर भगत को मंत्रीमंडल में शामिल कर लिया गया। कुछ मिलाकर भाजपा हाईकमान और संगठन में भाजपा को ही तबज्जो दी गई। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए एक साल का वक्त बचा है। अगर इस चुनाव में कांग्रेसी विधायकों के टिकट कटे तब भी वह घर वापिसी करेंगे। अगर कांग्रेसी विधायकों को कांग्रेस हाईकमान से सीएम पद का आफर मिला तो भी वह अपने घर वापिसी करेंगे। कुछ मिलाकर आगामी चुनाव में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए तमाम विधायक अपनी ताकत का एहसास भाजपा को कराने का पूरा प्रयास करेंगे। राजनैतिक विश्लेक्षकों की माने तो आगामी 2022 के चुनाव में भाजपा को चुनावी वैतरणी पार करने के लिए बहुत राजनैतिक भूकंपों को सहना होगा।
उत्तराखंड के वरिष्ठ लेखक राजनैतिक विश्लेषक योगेश भटट की माने तो नेतृत्व परिवर्तन भाजपा के लिए 2022 की चुनौती लेकर आयेगा। फिलहाल तो भाजपा हाईकमान ने विधायकों की आई इस आपदा को नियं​त्ररित किया है। पांच ठाकुर, चार ब्राहृण और तीन दलित का संतुलन बनाकर नई सरकार जनता को दे दी। विद्रोह रोकने के लिए मदन को संगठन में ले आए। मदन की स्वीकार्यता कितनी होगी यह तो वक्त बतायेगा।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के नेतृत्व में चुनाव होंगे तो मुख्यमंत्री का एक प्रत्याशी और बढ़ गया। जबकि मदन कौशिक के बायोडाटा में प्रदेश अध्यक्ष जुड़ने के साथ ही उनका कद अब मुख्यमंत्री पद के दावेदारी में आयेगा।
त्रिवेंद्र के नेतृत्व की सरकार में दलाली, टांसफर पोस्टिंग की इंडस्ट्री और घूसखोरी को बंद करके एक अच्छा सुशासन दिया। लेकिन जब त्रिवेंद्र सरकार ही पसंद नही आई तो आगामी चुनाव में तो कई भूकंप आना तय है।



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